ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 14/ मन्त्र 1
अध्व॑र्यवो॒ भर॒तेन्द्रा॑य॒ सोम॒माम॑त्रेभिः सिञ्चता॒ मद्य॒मन्धः॑। का॒मी हि वी॒रः सद॑मस्य पी॒तिं जु॒होत॒ वृष्णे॒ तदिदे॒ष व॑ष्टि॥
स्वर सहित पद पाठअध्व॑र्यवः । भर॑त । इन्द्रा॑य । सोम॑म् । आ । अम॑त्रेभिः । सि॒ञ्च॒त॒ । मद्य॑म् । अन्धः॑ । का॒मी । हि । वी॒रः । सद॑म् । अ॒स्य॒ । पी॒तिम् । जु॒होत॑ । वृष्णे॑ । तत् । इत् । ए॒षः । व॒ष्टि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अध्वर्यवो भरतेन्द्राय सोममामत्रेभिः सिञ्चता मद्यमन्धः। कामी हि वीरः सदमस्य पीतिं जुहोत वृष्णे तदिदेष वष्टि॥
स्वर रहित पद पाठअध्वर्यवः। भरत। इन्द्राय। सोमम्। आ। अमत्रेभिः। सिञ्चत। मद्यम्। अन्धः। कामी। हि। वीरः। सदम्। अस्य। पीतिम्। जुहोत। वृष्णे। तत्। इत्। एषः। वष्टि॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 13; मन्त्र » 1
अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 13; मन्त्र » 1
विषय - अब बारह चावाले चौदहवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में सोम के गुणों को कहते हैं।
पदार्थ -
हे (अध्वर्यवः) अपने को यज्ञ कर्मों की चाहना करनेवाले मनुष्यो ! तुम जो (एषः) यह (कामी) कामना करने के स्वभाववाला (वीरः) वीर (वृष्णे) बल बढ़ाने के लिये (अस्य) इस सोमरस के (पितीम्) पान को (वष्टि) चाहता है (तत्, इत्) उसे (सदम्) पाने योग्य सोम (हि) को निश्चय से तुम (जुहोत) ग्रहण करो (इन्द्राय) और परमैश्वर्य के लिये (अमत्रेभिः) उत्तम पात्रों से (मद्यम्) हर्ष के देनेवाले (अन्धः) अन्न को तथा (सोमम्) सोम रस को (सिञ्चत) सींचो और बल को (आ, भरत) पुष्ट करो ॥१॥
भावार्थ - जो मनुष्य सर्व रोग हरने, बुद्धि और बल के देनेवाले भोजन और पान अर्थात् उत्तम वस्तु पीने की कामना करते हैं, वे बलिष्ठ वीर होते हैं ॥१॥
इस भाष्य को एडिट करें