Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 20 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 20/ मन्त्र 1
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    व॒यं ते॒ वय॑ इन्द्र वि॒द्धि षु णः॒ प्र भ॑रामहे वाज॒युर्न रथ॑म्। वि॒प॒न्यवो॒ दीध्य॑तो मनी॒षा सु॒म्नमिय॑क्षन्त॒स्त्वाव॑तो॒ नॄन्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒यम् । ते॒ । वयः॑ । इ॒न्द्र॒ । वि॒द्धि । सु । नः॒ । प्र । भ॒रा॒म॒हे॒ । वा॒ज॒ऽयुः । न । रथ॑म् । वि॒प॒न्यवः॑ । दीध्य॑तः । म॒नी॒षा । सु॒म्नम् । इय॑क्षन्तः । त्वाऽव॑तः । नॄन् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वयं ते वय इन्द्र विद्धि षु णः प्र भरामहे वाजयुर्न रथम्। विपन्यवो दीध्यतो मनीषा सुम्नमियक्षन्तस्त्वावतो नॄन्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वयम्। ते। वयः। इन्द्र। विद्धि। सु। नः। प्र। भरामहे। वाजऽयुः। न। रथम्। विपन्यवः। दीध्यतः। मनीषा। सुम्नम्। इयक्षन्तः। त्वाऽवतः। नॄन्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 20; मन्त्र » 1
    अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 25; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    हे (वयः) मनोहर (इन्द्र) विद्वान् जो (विपन्यवः) विशेषकर स्तुति के व्यवहारों को करनेवाले (त्वावतः) आपके सदृश (नॄन्) मनुष्यों का (इयक्षन्तः) सत्कार करते हुए (दीध्यतः) देदीप्यमान (वयम्) हम लोग (मनीषा) बुद्धि से (ते) आपके (रथम्) विमानादि यान को (वाजयुः) वेग की कामना करनेवाला (न) जैसे वैसे (सुम्नम्) सुख को (सु,प्र,भरामहे) अच्छे प्रकार पुष्ट करें उन (नः) हम लोगों को आप (विद्धि) जानें ॥१॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो सत्कार करने योग्यों को सत्कार करते और सत्य व्यवहार से वर्त्ताव वर्त्तते हैं, वे समस्त सुख के धारण करने को योग्य होते हैं ॥१॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top