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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 30 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 30/ मन्त्र 1
    ऋषिः - गौरिवीतिः शाक्त्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    क्व१॒॑ स्य वी॒रः को अ॑पश्य॒दिन्द्रं॑ सु॒खर॑थ॒मीय॑मानं॒ हरि॑भ्याम्। यो रा॒या व॒ज्री सु॒तसो॑ममि॒च्छन्तदोको॒ गन्ता॑ पुरुहू॒त ऊ॒ती ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्व॑ । स्यः । वी॒रः । कः । अ॒प॒श्य॒त् । इन्द्र॑म् । सु॒खऽर॑थम् । ईय॑मानम् । हरि॑ऽभ्याम् । यः । रा॒या । व॒ज्री । सु॒तऽसो॑मम् । इ॒च्छन् । तत् । ओकः॑ । गन्ता॑ । पु॒रु॒ऽहू॒तः । ऊ॒ती ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्व१ स्य वीरः को अपश्यदिन्द्रं सुखरथमीयमानं हरिभ्याम्। यो राया वज्री सुतसोममिच्छन्तदोको गन्ता पुरुहूत ऊती ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क्व। स्यः। वीरः। कः। अपश्यत्। इन्द्रम्। सुखऽरथम्। ईयमानम्। हरिऽभ्याम्। यः। राया। वज्री। सुतऽसोमम्। इच्छन्। तत्। ओकः। गन्ता। पुरुऽहूतः। ऊती ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 30; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 26; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    हे विद्वन् ! (कः) कौन (वीरः) शूर (इन्द्रम्) बिजुली को (अपश्यत्) देखता है (क्व) किसमें (हरिभ्याम्) वेग और आकर्षण से (सुखरथम्) सुख के अर्थ (ईयमानम्) चलते हुए रथ को देखता है (यः) जो (वज्री) शस्त्र और अस्त्रों में युक्त (गन्ता) जानेवाला (पुरुहूतः) बहुतों से स्तुति किया गया (सुतसोमम्) इकट्ठा किया ऐश्वर्य्य जिसमें (तत्) उस (ओकः) गृह की (इच्छन्) इच्छा करता हुआ (ऊती) रक्षण आदि के लिये (राया) धन से बिजुली को देखता है (स्यः) वह सुख के लिये रथ को प्राप्त हो ॥१॥

    भावार्थ - हे विद्वन् ! कौन बिजुली आदि की विद्या के प्राप्त होने को अधिकारी हैं, इस प्रकार पूछता हूँ जो विद्वानों के सङ्ग से यथार्थवक्ता जनों की रीति से विद्या और हस्तक्रिया को ग्रहण करके नित्य प्रयत्न करें, यह उत्तर है ॥१॥

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