Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 63 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 63/ मन्त्र 1
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - अश्विनौ छन्दः - स्वराड्बृहती स्वरः - मध्यमः

    क्व१॒॑त्या व॒ल्गू पु॑रुहू॒ताद्य दू॒तो न स्तोमो॑ऽविद॒न्नम॑स्वान्। आ यो अ॒र्वाङ्नास॑त्या व॒वर्त॒ प्रेष्ठा॒ ह्यस॑थो अस्य॒ मन्म॑न् ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्व॑ । त्या । व॒ल्गू इति॑ । पु॒रु॒ऽहू॒ता । अ॒द्य । दू॒तः । न । स्तोमः॑ । अ॒वि॒द॒त् । नम॑स्वान् । आ । यः । अ॒र्वाक् । नास॑त्या । व॒वर्त॑ । प्रेष्ठा॑ । हि । अस॑थः । अ॒स्य॒ । मन्म॑न् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्व१त्या वल्गू पुरुहूताद्य दूतो न स्तोमोऽविदन्नमस्वान्। आ यो अर्वाङ्नासत्या ववर्त प्रेष्ठा ह्यसथो अस्य मन्मन् ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क्व। त्या। वल्गू इति। पुरुऽहूता। अद्य। दूतः। न। स्तोमः। अविदत्। नमस्वान्। आ। यः। अर्वाक्। नासत्या। ववर्त। प्रेष्ठा। हि। असथः। अस्य। मन्मन् ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 63; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    हे (वल्गू) शोभन वाणीवाले (पुरुहूता) बहुतों से प्रशंसा को प्राप्त (प्रेष्ठा) अतीव प्रिय (नासत्या) सत्यस्वभावयुक्त सभासेनाधीशो ! (यः) जो (अर्वाक्) नीचे जानेवाला (अद्य) आज (नमस्वान्) बहुत अन्नयुक्त वा सत्कृत (स्तोमः) स्तुति करने योग्य (दूतः) समाचार पहुँचानेवाले के (न) समान जन (अविदत्) प्राप्त होता वा (क्व) कहाँ (अस्य) इसके (मन्मन्) विज्ञान में जो (आ, ववर्त्त) अच्छे प्रकार वर्त्तमान है (त्या, हि) वे ही तुम दोनों (असथः) होते हो ॥१॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो इस जगत् के विज्ञान के निमित्त प्रयत्न करते हैं, वे कहीं भी दुःखित नहीं होते हैं ॥१॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top