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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 60 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 60/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - सूर्यः छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    यद॒द्य सू॑र्य॒ ब्रवोऽना॑गा उ॒द्यन्मि॒त्राय॒ वरु॑णाय स॒त्यम्। व॒यं दे॑व॒त्रादि॑ते स्याम॒ तव॑ प्रि॒यासो॑ अर्यमन्गृ॒णन्तः॑ ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । अ॒द्य । सू॒र्य॒ । ब्रवः॑ । अना॑गाः । उ॒त्ऽयन् । मि॒त्राय॑ । वरु॑णाय । स॒त्यम् । व॒यम् । दे॒व॒ऽत्रा । अ॒दि॒ते॒ । स्या॒म॒ । तव॑ । प्रि॒यासः॑ । अ॒र्य॒म॒न् । गृ॒णन्तः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदद्य सूर्य ब्रवोऽनागा उद्यन्मित्राय वरुणाय सत्यम्। वयं देवत्रादिते स्याम तव प्रियासो अर्यमन्गृणन्तः ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। अद्य। सूर्य। ब्रवः। अनागाः। उत्ऽयन्। मित्राय। वरुणाय। सत्यम्। वयम्। देवऽत्रा। अदिते। स्याम। तव। प्रियासः। अर्यमन्। गृणन्तः ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 60; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 1; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    हे (सूर्य) सूर्य्य के समान वर्त्तमान (अदिते) अविनाशी और (अर्यमन्) न्यायकारी जगदीश्वर ! (यत्) जो (अनागाः) अपराध से रहित आप हम लोगों को (उद्यन्) उद्यत कराते हुए सूर्य्य जैसे वैसे (मित्राय) मित्र और (वरुणाय) श्रेष्ठ जन के लिये (सत्यम्) यथार्थ बात को (ब्रवः) कहिये, वैसे हम लोगों के लिये कहिये जिससे आप की (देवत्रा) विद्वानों में (गृणन्तः) स्तुति करते हुए हम लोग (तव) आपके (अद्य) इस समय (प्रियासः) प्रिय (स्याम) होवें ॥१॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! आप लोग सूर्य्य के सदृश प्रकाशक परमात्मा ही की प्रार्थना करो, हे परब्रह्मन् ! आप हम लोगों के आत्माओं में अन्तर्य्यामी के स्वरूप से सत्य-सत्य उपदेश करिये, जिससे आपकी आज्ञा में वर्त्ताव कर के हम लोग आप के प्रिय होवें ॥१॥

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