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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 60 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 60/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अयु॑क्त स॒प्त ह॒रितः॑ स॒धस्था॒द्या ईं॒ वह॑न्ति॒ सूर्यं॑ घृ॒ताचीः॑। धामा॑नि मित्रावरुणा यु॒वाकुः॒ सं यो यू॒थेव॒ जनि॑मानि॒ चष्टे॑ ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अयु॑क्त । स॒प्त । ह॒रितः॑ । स॒धऽस्था॑त् । याः । ई॒म् । वह॑न्ति । सूर्य॑म् । घृ॒ताचीः॑ । धामा॑नि । मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒ । यु॒वाकुः॑ । सम् । यः । यू॒थाऽइ॑व । जनि॑मानि । चष्टे॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयुक्त सप्त हरितः सधस्थाद्या ईं वहन्ति सूर्यं घृताचीः। धामानि मित्रावरुणा युवाकुः सं यो यूथेव जनिमानि चष्टे ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयुक्त। सप्त। हरितः। सधऽस्थात्। याः। ईम्। वहन्ति। सूर्यम्। घृताचीः। धामानि। मित्रावरुणा। युवाकुः। सम्। यः। यूथाऽइव। जनिमानि। चष्टे ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 60; मन्त्र » 3
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 1; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    हे विद्वानो ! जैसे (सप्त) सात (हरितः) दिशा और (याः) जो (घृताचीः) रात्रियाँ (सधस्थात्) तुल्य स्थान से (सूर्यम्) सूर्य्य को और (ईम्) जल को (वहन्ति) धारण करती हैं, वैसे (यः) जो (अयुक्त) युक्त होता है (धामानि) जन्म, स्थान और नाम को (मित्रावरुणा) प्राण और उदान वायु को (युवाकुः) उत्तम प्रकार संयुक्त करनेवाला हुआ (यूथेव) समूहों के सदृश (जनिमानि) जन्मों को (सम्, चष्टे) प्रकाशित करता है, उसको आप लोग जनाइये ॥३॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जैसे पवन सूर्य्य लोकों को सब ओर से धारण करते हैं, वैसे विद्वान् जन सूर्य्य, प्राण और पृथिवी आदि की विद्या को जानें ॥३॥

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