Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 15
    ऋषिः - देवा ऋषयः देवता - धनादियुक्ता आत्मा देवता छन्दः - विराडार्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    0

    वसु॑ चे मे वस॒तिश्च॑ मे॒ कर्म॑ च मे॒ शक्ति॑श्च॒ मेऽर्थ॑श्च म॒ऽएम॑श्च मऽइ॒त्या च॑ मे॒ गति॑श्च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वसु॑। च॒। मे॒। व॒स॒तिः। च॒। मे॒। कर्म॑। च॒। मे॒। शक्तिः॑। च॒। मे॒। अर्थः॑। च॒। मे॒। एमः॑। च॒। मे॒। इ॒त्या। च॒। मे॒। गतिः॑। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥१५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वसु च मे वसतिश्च मे कर्म च मे शक्तिश्च मे र्थश्च मऽएमश्च मऽइत्या च मे गतिश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वसु। च। मे। वसतिः। च। मे। कर्म। च। मे। शक्तिः। च। मे। अर्थः। च। मे। एमः। च। मे। इत्या। च। मे। गतिः। च। मे। यज्ञेन। कल्पन्ताम्॥१५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 15
    Acknowledgment

    Translation -
    May my riches and my dwelling, my actions and my capacity to act, my objects and my aims to be obtained, and my ends and my approach be secured by means of sacrifice. (1)

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top