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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 12 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 12/ मन्त्र 3
अग्ने॑ दे॒वाँ इ॒हाव॑ह जज्ञा॒नो वृ॒क्तब॑र्हिषे। असि॒ होता॑ न॒ ईड्यः॑॥
स्वर सहित पद पाठअग्ने॑ । दे॒वान् । इ॒ह । आ । व॒ह॒ । ज॒ज्ञा॒नः । वृ॒क्तऽब॑र्हिषे । असि॑ । होता॑ । नः॒ । ईड्यः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्ने देवाँ इहावह जज्ञानो वृक्तबर्हिषे। असि होता न ईड्यः॥
स्वर रहित पद पाठअग्ने। देवान्। इह। आ। वह। जज्ञानः। वृक्तऽबर्हिषे। असि। होता। नः। ईड्यः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 12; मन्त्र » 3
अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
Bhajan -
आज का वैदिक भजन 🙏 981
ओ३म् अग्ने॑ दे॒वाँ इ॒हा व॑ह जज्ञा॒नो वृ॒क्तब॑र्हिषे ।
असि॒ होता॑ न॒ ईड्य॑: ॥
ऋग्वेद 1/12/3
हे तेजोमय !! प्रभु ज्ञानी !!
ज्योतिर्मयी जग के स्वामी,
साधक के शुद्ध हृदय में,
सूर्य सम हो अग्रगामी
जब ज्ञान कर्म-तप से
हुआ शुद्ध हृदय का उदयन,
साधक के उस हृदय में
तुम उदित होते भगवन्
अघ वासनाएँ भागीं,
साधक बना निष्कामी
रवि, सृष्टियों को जैसे,
करे ज्योति से विभासित,
परमात्म देव वैसे ,
करता हृदय प्रकाशित
दिव्य गुण-कर्म-स्वभाव ,
देता है अन्तर्यामी
स्तुति -प्रार्थना- उपासना
ईश्वर की करते साधक,
हर परिस्थिति में साधक,
रहते हैं बनके पावक
सुन के पुकार करता,
उनको निहाल स्वामी
हे तेजोमय !! प्रभु ज्ञानी !!
ज्योतिर्मयी जग के स्वामी,
साधक के शुद्ध हृदय में,
सूर्य सम हो अग्रगामी
रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई*
रचना दिनाँक :- १६.१.१९९७ १९.१०
राग :- कर्नाटक राग वेलावली( पटदीप)
गाने का समय दिन का तीसरा प्रहर, ताल दादरा ६ मात्रा
शीर्षक :- हे प्रभु तू हमें दिव्य गुणों को प्राप्त करें
*तर्ज :- अनुराग लोल गात्री( मलयालम)
0061-661
अग्रगामी = नेता
उदयन = उत्थान
अघ = पाप,
विभासित = चमकाना
पावक = शुद्ध, पवित्र
निहाल = सब प्रकार से संतुष्ट व प्रसन्न
Vyakhya -
प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇
ज्ञान-कर्म रूप अरणियों की रगड़ से, ज्ञान के अनुरूप आचरण करने से, उपासक के हृदय में जब सूर्य के समान उस प्रकाश स्वरूप प्रभु का उदय होता है और इधर 'वृक्तबर्हिषे' जो अपनी वासनाओं को वरजते - वरजते अपने हृदय को वासना शून्य अर्थात सर्वथा स्वच्छ- निर्मल पवित्र बना लेता है,तो फिर जैसे उदय होते ही सूर्य अपनी रचनाओं से सब को आलोकित- प्रकाशित एवं तेजोमय बनाकर नाना विध शक्तियों से युक्त करता है, ऐसे वह प्रकाशस्वरूप प्रभु फिर उसको उत्तम दिव्य गुण- कर्म- स्वभाव से युक्त करता है।
भक्तों उपासकों का तो फिर एकमात्र वही परमेश्वर ही स्तुत्य उपास्य पूज्य हो जाता है, और फिर वह सब अपनी हर परिस्थिति में उसी का ही आव्हान करते हैं और वह परमात्मा भी फिर उनकी हर प्रकार की पुकार को सुनकर उन्हें निहाल-कृतार्थ करता है।
🕉️👏🏽🧎🏽♂️ईश भक्ति भजन
भगवान ग्रुप द्वारा 🎧