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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 27 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 27/ मन्त्र 13
    ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    नमो॑ म॒हद्भ्यो॒ नमो॑ अर्भ॒केभ्यो॒ नमो॒ युव॑भ्यो॒ नम॑ आशि॒नेभ्यः॑। यजा॑म दे॒वान्यदि॑ श॒क्नवा॑म॒ मा ज्याय॑सः॒ शंस॒मा वृ॑क्षि देवाः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑ । म॒हत्ऽभ्यः॑ । नमः॑ । अ॒र्भ॒केभ्यः॑ । नमः॑ । युव॑भ्यः । नमः॑ । आ॒शि॒नेभ्यः॑ । यजा॑म । दे॒वान् । यदि॑ । श॒क्नवा॑म । मा । ज्याय॑सः॒ । शंस॑म् । आ । वृ॒क्षि॒ । दे॒वाः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमो महद्भ्यो नमो अर्भकेभ्यो नमो युवभ्यो नम आशिनेभ्यः। यजाम देवान्यदि शक्नवाम मा ज्यायसः शंसमा वृक्षि देवाः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। महत्ऽभ्यः। नमः। अर्भकेभ्यः। नमः। युवभ्यः। नमः। आशिनेभ्यः। यजाम। देवान्। यदि। शक्नवाम। मा। ज्यायसः। शंसम्। आ। वृक्षि। देवाः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 27; मन्त्र » 13
    अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 24; मन्त्र » 3

    Bhajan -

      वैदिक मन्त्र
    नमो महद्भ्यो नमो अर्भकेभ्यो नमो युवभ्यो नम आशिनेभ्य:। 
    यजाम देवान् यदि शक्नवाम, मा ज्यायस:शंसमा वृक्षि देवा: ।।   ऋ• १.२७.१३
                         वैदिक भजन११५२ वां
                               यमनकल्याण 
              ‌    गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर
                               ताल कहरवा
                                    भाग १
    सामाजिक प्राणी मनुष्य हैं हम 
    शिष्टाचार हमारा 
    लगता है सबको प्यारा        
    लगता है सबको प्यारा 
    अभिवादन आपस में करते हम 
    अन्तर्मन है न्यारा 
    विनम्रता धन है हमारा,                
    है  शिष्टाचार हमारा 
    प्रणाम नमस्ते(४) 

    राज्याधिकारी माता-पिता गुरु 
    अतिथि साधु सन्यासी (२) 
    शिशु युवक वृद्ध व कुमार विद्यार्थी 
    स्वामी सेवक नाती(२) 
    श्रद्धा और प्रेम से मिलाप करते 
    भाव नमन का प्यारा
    है शिष्टाचार हमारा(२) 
     प्रणाम नमस्ते (४) 

    ये अभिवादन का भाव ललित है 
    शब्द है 'वैदिक नमस्ते' (२) 
    अत्यन्त हृदयग्राही यह शब्द है 
    नित्य अभिवादन करते(२)       
    हम छोटे-बड़े श्रद्धा प्रगटाते 
    भाव सौहार्द का सारा  ।। 
    है शिष्टाचार हमारा(२) 
    प्रणाम नमस्ते (४) 

    ये नम: न केवल शुभकामना है 
    संग है कर्तव्य पालन (२)                
    और एक दूजे की उन्नति-कामना 
    प्रेम और स्नेह का साधन(२)      
    अन्त:स्तल में जो चमकता है   
    प्रेम- आदर का सितारा                
    है शिष्टाचार हमारा                 
    प्रणाम नमस्ते(४) 
                       भाग २
    सामाजिक प्राणी मनुष्य है हम
    शिष्टाचार हमारा 
    लगता है सबको प्यारा          
    लगता है सबको प्यारा 
    अभिवादन आपस में करते हम 
    अन्तर्मन है न्यारा              
    विनम्रता धन है हमारा                   
    है शिष्टाचार हमारा (२)   
    प्रणाम नमस्ते(४) 
    हे राष्ट्र के विद्यावृद्ध गुणवृद्ध
     महान नर और नारियों (२) 
    उपदेशामृत वर्षक जन-मन के  
    वीतराग सन्यासियो(२) 
    हे शिरोमणि विद्वान तपोनिष्ठ 
    नमन है  तुमको हमारा 
    है शिष्टाचार हमारा (२) 
    प्रणाम नमस्ते (४) 

    हे निश्छल भावभंगियो बालको, 
    बाल क्रीड़ाओं के शिशुओ (२) 
    हे गुरु शिष्यो  ब्रह्मचार्यो 
    तुम्हें नमन है तपस्वियो(२) 
    हे बली साहसी ओजस्वियो 
    तुम हो नमन की धारा।।              
    है शिष्टाचार हमारा (२) 
    प्रणाम नमस्ते(४) 
    समस्त बालक युवक वृद्ध हो 
    अर्चनीय देव हमारे (२) 
    इन्हें स्नेह- सत्कार मैं दे दूंगा 
    सेवा योग्य हैं प्यारे (२) 
    छोटे बड़े जो प्रियजन हैं 
    उन्हें हृदय- नमन का वारा।।
    है शिष्टाचार हमारा 
    प्रणाम नमस्ते(४) 
    सामाजिक............... 
                              शब्दार्थ:-
    ललित= सुन्दर, मनोहर, कोमल
    सौहार्द= मैत्री, दोस्ती, सद्भाव
    हृदयग्राही =हृदय में ग्रहण करने योग्य
    गुणवृद्ध= गुणों से भरा
    वीतराग=राग रहित, आसक्ति त्यागा हुआ
    शिरोमणि= माननीय और श्रेष्ठ व्यक्ति
    तपोनिष्ठ= तप में लीन
    निष्छल= बिना छल कपट का
    भावभंगी= मन का भाव प्रकट करने वाला
    क्रीड़ा= खेल
    अर्चनीय= पूज्य, वंदनीय, उपासनीय
    वारा= न्योछावर किया हुआ

    🕉🧘‍♂️द्वितीय श्रृंखला का १४५ वां वैदिक भजन 
    और अब तक का वैदिक ११५२ वां भजन🙏
    🕉 वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं !🙏
     

    Vyakhya -

    बड़े छोटे को नमः
    मनुष्य सामाजिक प्राणी है। उसे अन्यों के प्रति अभिवादन आदि उचित शिष्टाचार का पालन करना होता है। मैं भी बड़े छोटे सबको अभिवादन करता हूं;कृत्रिम और दिखावटी नहीं किन्तु अंतर्मन से 'नमः' करता हूं। 'नम:' का मूल अर्थ है झुकना।झुकना सर से भी होता है,मन से भी। राजा, राज्य अधिकारी, माता-पिता, गुरु, अतिथि, साधु, सन्यासी, शिशु, कुमार, विद्यार्थी, युवक, वृद्ध, स्वामी, सेवक प्रत्येक से मिलने पर हृदय में जो आदर, श्रद्धा, प्रेम आशीर्वाद,आदि के भाव उत्पन्न होते हैं, वे सब 'नम:' के अन्दर समाविष्ट हैं। अतःअभिवादन के लिए वैदिक 'नमस्ते' शब्द अत्यंत हृदयग्राही और उपयुक्त है । जब छोटा बड़े को नमस्ते करता है । तब वह बड़े के प्रति अपने हृदय के सम्मान और अपनी श्रद्धा को प्रकट करता है। प्रत्युत्तर में बड़े द्वारा छोटे को 'नमस्ते' कहने में उसके अंत स्तल में निहित प्रेम और आशीर्वाद उमड़कर प्रवाहित होता रहा है। समान द्वारा सामान को 'नमस्ते'कहने में पारस्परिक सौहार्द और एक दूसरे की उन्नति की कामना व्यक्त होती है। साथ ही नमः में केवल शुभकामना ही नहीं प्रत्युत बड़े छोटे सबके प्रति कर्तव्य पालन का भाव भी निहित है।
    हे राष्ट्र के विद्यार्थी और गुण वृद्धि महान नर नारियो ! हे उपदेशामृत- वर्षा से जनता को तृप्त करने वाले वीतराग सन्यासियो ! हे विद्वच्छिरोमणि तपोनिष्ठ वानप्रस्थ आचार्यो! हे देश के लिए प्राणों का उत्सर्ग करने को उद्यत महावीरो! हे जनता जनार्दन की सेवा में तत्पर महापुरुषों! 'तुम्हें नमः' ! हे निश्छल भावभंगियों और बालक क्रिड़ाओं से मन को मुदित करने वाले बोध शिशुओ ! हे अल्प वयस्क कुमारो ! हे गुरु के अधीन विद्या अध्ययन में रत तपस्वी, व्रत ब्रह्मचारियों!तुम्हें नमः। हे अपने संकल्प बल से भूमि आकाश को झुका देने वाले ब,ली साहसी, ओजस्वी विजयी युवकों ! तुम्हें नमः। है परिपक्व, धीर गम्भीर, अनुभवी धन्य, वन्दनीय वयोवृद्ध जनों !तुम्हें नमः।
    समस्त बालक, युवक, वृद्ध मेरे अर्चनीय देव हैं। जहां तक संभव होगा मैं इन्हें स्नेह-सत्कार दूंगा, इनकी सेवा करूंगा। यह भी ध्यान रखूंगा कि जो मुझसे बड़े हैं उनकी शंसना में, उनके उपकार के प्रति कृतज्ञता-ज्ञापन में मुझसे कोई त्रुटि न होगी। 

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