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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 91 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 91/ मन्त्र 8
त्वं न॑: सोम वि॒श्वतो॒ रक्षा॑ राजन्नघाय॒तः। न रि॑ष्ये॒त्त्वाव॑त॒: सखा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । नः॒ । सो॒म॒ । वि॒श्वतः॑ । रक्ष॑ । रा॒ज॒न् । अ॒घ॒ऽय॒तः । न । रि॒ष्ये॒त् । त्वाऽव॑तः । सखा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं न: सोम विश्वतो रक्षा राजन्नघायतः। न रिष्येत्त्वावत: सखा ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम्। नः। सोम। विश्वतः। रक्ष। राजन्। अघऽयतः। न। रिष्येत्। त्वाऽवतः। सखा ॥ १.९१.८
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 91; मन्त्र » 8
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
Bhajan -
वैदिक मन्त्र
त्वं न: सोम विश्वतो रक्षा राजन्नघायत:।
न रिष्येत् त्वआवत: सखा।।ऋ•१.९१.८
वैदिक भजन १०९३
भाग १
राग जयजयवंती
गायन समय मध्य रात्रि
विलंबित कहरवा ८ मात्रा
तुम हो सचमुच रक्षक राजा
सोमदेव हमारे (२)
अंतः करण में तुझसे जुड़ा हूं
पाऊं सखित्व हे प्यारे !(२)
तुम हो...........
मानव जग में क्षुद्र हैं राजा
रक्षक कितना ही बनें चाहे
अल्प-शक्तियां जीव हैं सारे
तुम रक्षक हो हमारे।।
तुम हो.........
क्या परवाह है जान-माल की
धर्म के खातिर त्याग सकूं ना ?
बस चिन्ता पापों की लगी है
ना कोई इनसे बचा रे।।
तुम हो.......
करते आक्रमण पाप लुटेरे
हमें बचाओ पापों से
तुम हो अन्तस के उजियारे
अग्निस्वरूप हमारे।।
तुम हो......
शब्दार्थ:-दोनों भागों के अन्त में
भाग-२
तुम हो सचमुच रक्षक राजा
सोमदेव हमारे
अंतःकरण में तुझसे जुड़ा हूं
तुम रक्षक हो हमारे।।
तुम हो........
पापी दुष्कर्मी दुरितों से
रक्षित करो हे ऋतमन राजन्
राज्य में हम आए हैं तुम्हारे
श्रेष्ठ हो राजा हमारे।।
तुम हो...........
मैत्री तुझ सर्वशक्तिमान की
पा लूं यदि जित-जीवन में
फिर प्रभु क्योंकर तू ना तारे ?
जीवन है तेरे सहारे।।
तुम हो........
बारम्बार है हृदयी प्रार्थना
पाप हरो हे स्तुत्य सोमदेव !
करो सुरक्षित पाप-पतन से
दूर करो अन्धियारे।।
तुम हो.......
अतिग-अमोल सखित्व मिले तव
चारों ओर से अघ से बचा लो
मित्रता स्थिर कर है ऋत- राजन्
पाप के मोचनहारे
तुम ही.........
३०.५.२०२३
१०.२५ रात्रि
(१.१०.२००२ का संशोधित)
शब्दार्थ:-
क्षुद्र= छोटा, नीच
अतिग=बढ़ने वाला,उत्कृष्ट
जित=वश में किया हुआ
ऋतमन=सनातन नियमोंमें रहने वाला मन
पतन= गिरावट
पाप मोचन=पापों को हरने वाला
अघ=पाप
दुरित=बुराइयां
ऋत-राजन=सनातन नियमों को पालने वाला राजा
🕉🧘♂️
द्वितीय चरण का 85 वां वैदिक भजन और अब तक का 1092 वां वैदिक भजन
वैदिक श्रोताओं को हार्दिक धन्यवाद एवं शुभकामनाएं❗🌹🙏
Vyakhya -
राजा सोमदेव
हे सोमदेव! तुम्हीं वास्तव में हमारे राजा हो। यद्यपि संसार के मनुष्य राजा भी जान-माल आदि की रक्षा करने के लिए होते हैं, परवल पर शक्ति राजा चाहे कितनी हुकूमत की शक्ति रखते हो तो भी हमारी पूरी तरह रक्षा नहीं कर सकते, पर मुझे अपने जान-माल की ऐसी परवाह नहीं है, इनको तो मैं धर्म के लिए खुशी से जाने दूंगा, अतः हत्यारों और लुटेरों के आक्रमण से रक्षा पाने की मुझे कोई चिन्ता नहीं होती। मुझे तो चिन्ता है पाप के आक्रमण से रक्षा पाने की। इस्पात के आक्रमण से ही बचने की मुझे सख़्त ज़रूरत है और इस आक्रमण से तो, हे मेरे अन्तस्तम के राजा! मुझ में अंदर से हुकूमत करने वाले स्वामी ! हे असली राजा ! तुम ही चारों ओर से मुझे बचा सकते हो। बड़े से बड़ा श्रेष्ठ राजा भी अपने बाहरी सुप्रबन्ध से हमें पाप के आक्रमण से सर्वथा सुरक्षित नहीं कर सकता। इसलिए है राजाओं के राजा परमेश्वर ! तुम से हम प्रार्थना करते हैं कि तुम हमें पाप चाहनेवालों से सब ओर से रक्षित करो। हे सर्वशक्तिमन् मैं तो अपने अन्दर तुम्हीं से सम्बन्ध जोड़ चुका हूं, मुझे अब किसका डर है? तुझ- जैसे से अपना सम्बन्ध जोड़नेवाला--तुझे सर्वशक्तिमान राजा की मैत्री पाया हुआ तेरा सखा--कभी नष्ट नहीं हो सकता। तेरी सर्वशक्तिमान शरण में पहुंचे हुए को नाश कर सकने वाली वस्तु कहां से आएगी? पर ऐसा तेरा सखित्व पाने के लिए और ऐसा अमूल्य सखित्व पाकर उस को स्थिर रखने के लिए बस, पाप से सुरक्षित रहने की ज़रूरत है। इसलिए हमारी बारंबार यही प्रार्थना है कि हमें पाप से चारों ओर से बचाइए--हमें पाप से सब और से बचाइए।