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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 121 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 121/ मन्त्र 2
ऋषिः - हिरण्यगर्भः प्राजापत्यः
देवता - कः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
य आ॑त्म॒दा ब॑ल॒दा यस्य॒ विश्व॑ उ॒पास॑ते प्र॒शिषं॒ यस्य॑ दे॒वाः । यस्य॑ छा॒यामृतं॒ यस्य॑ मृ॒त्युः कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥
स्वर सहित पद पाठयः । आ॒त्म॒ऽदाः । ब॒ल॒ऽदाः । यस्य॑ । विश्वे॑ । उ॒प॒ऽआस॑ते । प्र॒ऽशिष॑म् । यस्य॑ । दे॒वाः । यस्य॑ । छा॒याम् । ऋत॑म् । यस्य॑ । मृ॒त्युः । कस्मै॑ । दे॒वाय॑ । ह॒विषा॑ । वि॒धे॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्य देवाः । यस्य छायामृतं यस्य मृत्युः कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥
स्वर रहित पद पाठयः । आत्मऽदाः । बलऽदाः । यस्य । विश्वे । उपऽआसते । प्रऽशिषम् । यस्य । देवाः । यस्य । छायाम् । ऋतम् । यस्य । मृत्युः । कस्मै । देवाय । हविषा । विधेम ॥ १०.१२१.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 121; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
Bhajan -
आज का वैदिक भजन 🙏 1173
ओ३म् य आ॑त्म॒दा ब॑ल॒दा यस्य॒ विश्व॑ उ॒पास॑ते प्र॒शिषं॒ यस्य॑ दे॒वाः ।
यस्य॑ छा॒यामृतं॒ यस्य॑ मृ॒त्युः कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥
ऋग्वेद 10/121/2
पाठभेद यजुर्वेद 25/13, अथर्ववेद 4/2/1, 13/3/24
सुख स्वरूप देवता
आ करें तेरी पूजा
प्रेरणा तू ऐसी दे
जैसी पाएँ देवता
सुख स्वरूप देवता
आ करें तेरी पूजा
देता तू ही आत्मस्वरूप
दृष्टि करुणामयी
आत्म-शक्तिहीन को
देता आत्मबल तू ही
है तेरे नियम अटल
तोड़ ना कोई सका
सुख स्वरूप देवता
आ करें तेरी पूजा
है प्रकष्ट शासन
जिसमें प्राणी रह रहे
अग्नि वायु सूर्य पृथ्वी
दिव्य कर्म कर रहे
अधिपति हमारा वो
हम उसकी प्रजा
सुख स्वरूप देवता
आ करें तेरी पूजा
इस जगत् में भोग है
जिसमें ना सन्तोष है
क्षणिक भोग का ही कारण
मृत्यु रूप शोक है
ईश शरण अमृतमय
बने दु:ख की दवा
सुख स्वरूप देवता
आ करें तेरी पूजा
आओ शरण प्रभु की पाएँ
गायें प्रभु महिमा
जिसकी छाया में अमृत है
दया ममता करुणा
आत्मत्याग से जगे
पूजन की भावना
सुख स्वरूप देवता
आ करें तेरी पूजा
प्रेरणा तू ऐसी दे
जैसी पाएँ देवता
सुख स्वरूप देवता
आ करें तेरी पूजा
रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
रचना दिनाँक :--
राग :- यमन
गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर, ताल कहरवा 8 मात्रा
शीर्षक :- प्रभु की परिचर्या करो भजन ७५१वां
*तर्ज :- *
00150-750-00151
प्रकष्ट = श्रेष्ठ,उदार, महान
आत्मात्याग = आत्मसमर्पण
Vyakhya -
प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇
प्रभु की परिचर्या करो
आओ हम अपना सर्वार्पण करके भी उस सुख स्वरूप देव की पूजा करें,जो हमारे आत्मस्वरूप का देने वाला है। हम अपने आप आत्मा को ही भूल कर भटक रहे हैं।वह हमें इस अपने-आप को प्राप्त करा देता है।वही हमें बल भी देता है अपने को खोकर आत्मशक्तिहीन हुए हम लोगों को वही अपनी करुणा से शक्ति भी प्रदान करता जाता है। और जब हम उस सब शक्ति के भंडार को कुछ अनुभव करने लगते हैं तो हम देखते हैं कि यह सब विश्व उसके आश्रित है, सब प्राणियों को सब कुछ देने वाला वही है,सब प्राणी उसी के प्रकष्ट शासन में रह रहे हैं। जाने या अनजाने सब उसी का आश्रय ग्रहण कर रहे हैं। उसके परिपूर्ण शासन का कोई उल्लंघन नहीं कर सकता। उसके नियम अटल हैं। संसार में जो बड़ी-से-बड़ी शक्तियां (देव)काम करती दिखाई दे रही हैं, वे सब उसी की आज्ञा का पालन कर रही है। उसी की प्रेरणा से प्रेरित पृथ्वी सूर्य और वायु अग्नि आदि सब देव अपने- अपने महान् कार्य ठीक-ठाक चला रहे हैं। ऋषि देखते हैं कि मृत्यु भी उसी के भय से उसकी आज्ञा में दौड़ता फिर रहा है।अहो! इस मौत से तो यह संपूर्ण ही संसार डरता है।सचमुच इस जगत में जहां सुख-भोग हैं, वहां इन्हें क्षणिक बनाने वाला दु:ख- संताप भी जगत में है और कोई भी ऐसा जन्म पाने वाला नहीं है जो मृत्यु का ग्रास ना होता हो। देखो, यह "राम की चक्की" संसार में ऐसी चल रही है कि इसमें सब के सब पिससे जा रहे हैं,मरते जा रहे हैं। इस मृत्यु के विकराल काल चक्र को चलाने वाला इसका शासक भी वही है। सब संसार दु:ख-पीड़ित और मौत का मारा हुआ पड़ा है। हे मनुष्यो! यदि तुम उसकी इस विकराल भयरूपिणी मृत्युदेवी से घबरा चुके हो तो यह भी आश्चर्य देखो कि जब मनुष्य उस प्रभु की शरण में आ जाता है तो यही मृत्यु अमृत बन जाती है। उस प्रभु को मंगलमय छाया में कोई संताप नहीं रहता, मृत्यु भी मृत्यु नहीं रहती। आत्मस्वरूप को देखकर वह हमें क्षण में अमर कर देता है। आओ हम उस आत्म स्वरूप को देने वाले की शरण में आकर अमर बन जाएं, उसी से बल की याचना करें जिससे कि हम सदा उसकी छाया में ही सुख से रहने में कृतकार्य हो जाएं।
🕉🧘♂️ईश भक्ति भजन
भगवान् ग्रुप द्वारा🌹 🙏
वैदिक स्रोतों को हार्दिक शुभकामनाएं ❗🌹🙏