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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 151 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 151/ मन्त्र 1
    ऋषिः - श्रद्धा कामायनी देवता - श्रद्धा छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    श्र॒द्धया॒ग्निः समि॑ध्यते श्र॒द्धया॑ हूयते ह॒विः । श्र॒द्धां भग॑स्य मू॒र्धनि॒ वच॒सा वे॑दयामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श्र॒द्धया॑ । अ॒ग्निः । सम् । इ॒ध्य॒ते॒ । श्र॒द्धया॑ । हू॒य॒ते॒ । ह॒विः । श्र॒द्धाम् । भग॑स्य । मू॒र्धनि॑ । वच॑सा । आ । वे॒द॒या॒म॒सि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    श्रद्धयाग्निः समिध्यते श्रद्धया हूयते हविः । श्रद्धां भगस्य मूर्धनि वचसा वेदयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    श्रद्धया । अग्निः । सम् । इध्यते । श्रद्धया । हूयते । हविः । श्रद्धाम् । भगस्य । मूर्धनि । वचसा । आ । वेदयामसि ॥ १०.१५१.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 151; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 9; मन्त्र » 1

    Bhajan -

    श्रद्धयाग्नि: समिध्यते श्रद्धया
    हूयतये हवि: ।
    श्रद्धाया हास्य मूर्धनी वचसा व
    वेदयामसि।। ऋ•१०.१५१.१
         
                 वैदिक भजन १११८वां
                     राग छायानट
         गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर
                      ताल अद्धा
    श्रद्धा के फूलों की फैलती सुवास
    पावन हृदय का मिले साथ
    श्रद्धा के........
    श्रद्धा-श्रेय मैं शान्ति का भेज ध्येय
    सत्य की दृढ़ता है तर्क से ज्ञेय
    भव्य भावना हो अन्तः ज्ञात
    हवि श्रद्धा के साथ ।।
    श्रद्धा के........
    श्रद्धा का अर्थ है सत्य का धारण
    प्रति क्षेत्र जीवन का,सत्य करे क्षालन
    श्रद्धा की दृढ़- भूमि, सत्य का निवास
    श्रद्धा से करें हम श्राद्ध ।।
    श्रद्धा के..…....
    आस्था शून्य है कर्म असफल
    श्रद्धा कर्मों से बनते संकल्प
    श्रद्धावान कर सत्य-प्रकाश
    कर ऐश्वर्यों को प्राप्त ।।
    श्रद्धा के..........
                   शब्दार्थ:-
    श्रद्धा=सत्य का धारण करना
    अन्तःज्ञात= हृदय से जाना हुआ
    क्षालन=शुद्धता, शुद्ध करने का कार्य

    वैदिक मन्त्रों के भजनों की द्वितीय श्रृंखला का १११ वां वैदिक भजन ।
    और प्रारम्भ से क्रमबद्ध अबतक का १११८ वां वैदिक भजन 
    वैदिक संगीत प्रेमी श्रोताओं को  हार्दिक शुभकामनाएं !
    🕉️🙏🌷🌺🥀🌹💐

    Vyakhya -

    प्रिय श्रोताओं आज से आपको  एक-एक करके श्रद्धा सूक्त के ६ वैदिक भजन पोस्ट होंगे। आज पहले मन्त्र का पहला वैदिक भजन है। 
    प्राक्कथन
                 श्रद्धा का रहस्य
    प्रिय वेदों के उपासक श्रोताओ !
    यदि वेदों को आप सही रूप से समझते हो तो शंका को श्राद्ध में परिवर्तित करो, ऐसा कहो कि जहां शंका होगी वहां उसके विपरीत में श्रद्धा लाऊंगा।
    शंका ये भय, दुःख, क्लेश, विपत्ति आदि
    का विषय है, जबकि श्रद्धा सुख और आनन्द की अनुभूति का विषय है।
    श्रद्धा हम में आत्मविश्वास की उन्नत भावना जगाकर हमारे आत्मविश्वास और भावों को प्रबल बनाती है।
    श्रद्धा शंका के आवरणों को काट डालती है, इसके साथ ही अवरोध के आवरणों को भी छिन्न-भिन्न करके सत्य को उजागर कर देती है।
    अंततोगत्वा यही श्रद्धा हमें हमारे लक्ष्य पर पहुंचाती है।
    "यह श्रद्धा ही ले गई मुझे मंजिल पर,
    राह भूल चुका था अब दिशाएं भर गईं।।
    सुख भोगने की इच्छा किए बिना जो सुख हमें ईश्वर से मिलता है उसे 'प्रसाद' कहते हैं। किन्तु इस प्रसाद को पाने के लिए जिस वस्तु की आवश्यकता पड़ती है उसी का नाम 'श्रद्धा' है।
         श्रद्धा सूक्त के पहले मन्त्र का भाव

    ऋत्+धा=श्रद्धा=सत्य का धारण करना।
    पहले ठीक ठीक सत्य को जाना जाए, और फिर सत्य को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में धारण किया जाए, यह श्रद्धा की वास्तविक दृढ़ भूमि हो सकती है। श्रद्धा=आस्था से विरहित होकर किया कार्य सफल ही नहीं हो सकता। जब किसी कार्य पर मनुष्य को श्रद्धा होती है, तब वह अपना पूरा सामर्थ्य उसकी सिद्धि में लगा देता है। इसी वास्ते मंत्र के उत्तरार्ध में श्रद्धा को ऐश्वर्य का मूर्धस्थानी माना है।
    अतः मनुष्य को श्रद्धा से भरपूर होना चाहिए।
    श्रद्धयाग्नि: समिध्यते श्रद्धया
    हूयतये हवि: ।
    श्रद्धाया हास्य मूर्धनी वचसा व
    वेदयामसि।। ऋ•१०.१५१.१
         

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