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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 1/ मन्त्र 29
    ऋषिः - मेधातिथिमेध्यातिथी काण्वौ देवता - इन्द्र: छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः

    मम॑ त्वा॒ सूर॒ उदि॑ते॒ मम॑ म॒ध्यंदि॑ने दि॒वः । मम॑ प्रपि॒त्वे अ॑पिशर्व॒रे व॑स॒वा स्तोमा॑सो अवृत्सत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मम॑ । त्वा॒ । सूरे॑ । उत्ऽइ॑ते । मम॑ । म॒ध्यन्दि॑ने । दि॒वः । मम॑ । प्र॒ऽपि॒त्वे । अ॒पि॒ऽश॒र्व॒रे । व॒सो॒ इति॑ । आ । स्तोमा॑सः । अ॒वृ॒त्स॒त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मम त्वा सूर उदिते मम मध्यंदिने दिवः । मम प्रपित्वे अपिशर्वरे वसवा स्तोमासो अवृत्सत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मम । त्वा । सूरे । उत्ऽइते । मम । मध्यन्दिने । दिवः । मम । प्रऽपित्वे । अपिऽशर्वरे । वसो इति । आ । स्तोमासः । अवृत्सत ॥ ८.१.२९

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 1; मन्त्र » 29
    अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 15; मन्त्र » 4

    Bhajan -

      वैदिक मन्त्र
    मम त्वा सूर उदिते, मम मध्यदिने दिव : । 
    मम प्रपित्वे अपि शर्करा वसो, 
    आ स्तोमासो अवृत्सत।।    ऋ•८.१.२९
                        वैदिक भजन ११५० वां
                             राग किरवानी
               गायन समय रात्रि का द्वितीय प्रहर
                              ताल अध्धा
    हे इन्द्र हे मेरे हृदय के सम्राट !
    हे दुर्गुण वविदारक हे यावान 
    असहायों के सहाय हे शूरवान 
    मेरे स्तोत्र गा रहे हैं तेरा गुणगान 
    हे इन्द्र......... 
    जब उषा की पावन किरणें 
    करतीं धारा को ज्योतित्(२) 
    सूर्योदय में स्तोत्र गान से 
    होता हृदय आराधित (२)
    रात्रि गमन से दिवस आगमन 
    घटना चक्र है महान
    हे इन्द्र......... 
    मध्याह्न काल में सूर्य-प्रखरता 
    स्त्रोत हो तुम्हीं प्रभा के(२)  
    सायंकाल में मरीचियों को 
    रवि भगवान समेटे (२)
    रक्तिम संध्या कीक्षजाती उमड़ 
    प्रतिची की है शान 
    हे  इन्द्र..... 
    रात्रि का सन्नाटा छाता 
    स्निग्ध चान्दनी खिलती(२) 
    द्यावा-पृथ्वी में अंधियारी 
    देती सुखद सुषुप्ति (२) 
    मुस्कुराती नभ में 
    तारावली की चमकान 
    हे इन्द्र ....... 
    इन सारी महिमा के द्योतक
    इन्द्र तुम ही कहाते (२) 
    सबल स्तोत्र ये मेरे तुमको 
    रहे सदा रीझाते(२) 
    प्रेरक तुम हो मैं स्तोता हूं 
    कवि गोष्ठी है प्रमाण ।। 
    हे इन्द्र.......... 
                             २७.९.२०२३
                               ६.३५ सायं
                                 शब्दार्थ:-
    विदारक=दिल दहलाने वाला
    ज्योतित= प्रकाशित
    आराधित= पूजित, जिसके उपासना हुई हो
    प्रखरता= प्रचंडता,तेजी
    प्रभा= प्रकाश, दीप्ति
    मरीचियां= किरण, रश्मि, कान्ति
    स्निग्ध= स्नेहयुक्त ,चिकना
    सुषुप्ति= सोने की अवस्था
    द्योतक= प्रकाश करने वाला
    कविगोष्ठी= कवियों की सभा

    🕉🧘‍♂️ द्वितीय श्रृंखला का १४३ वां वैदिक भजन
    और अब तक का ११५०  वां वैदिक भजन🙏

    🕉🧘‍♂️वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं❗
     

    Vyakhya -

    अहर्निश प्रवृत्त स्तोम
    हे इन्द्र ! हे मेरे हृदय के सम्राट परम प्रभु ! हे परम ऐश्वर्य शालीन ! हे दु:ख दुर्गुण विदारक ! हे शूर ! हे मुझे असहाय के परम सहायक! तुम्हारे प्रति मेरे स्तोत्र अहर्निश 
    प्रवृत्त हो रहे हैं। जब उषा की पावन किरणें अंधकार को चीरती हुई आकाश की ओर धरतीतल पर अवतीर्ण होती हैं तथा ज्योति के परम स्रोत सूर्य का उदय होता है, तब मैं स्तोत्र से तुम्हारा महिमागान करता हूं क्योंकि मैं जानता हूं की रात्रि के गमन और दिवस के आगमन का यह मोहक और प्रभाव-उत्पादक घटना चक्र तुम्हारे ही द्वारा संचालित हो रहा है। जब मध्यान्ह काल में मरीचिमाली सूर्य गगन के मध्य में अविराजते हैं और अपनी संपूर्ण तीव्रता के साथ तपने लगते हैं, उस समय भी है इन्द्रदेव मेरे स्तोत्र तुम्हारा गान करने लगते हैं, क्योंकि प्रभाकर की इस मध्यान्ह कालीन तीव्र प्रभा के स्रोत भी तुम हो। जब सायंकाल होता है, सूर्य भगवान अपनी मरीचियों को समेटने लगते हैं, संध्या की रक्तिमा प्रतिची में उमड़ आती है, उस समय भी है देवाधिदेव मैं भाव विभोर होकर तुम्हारे ही स्तुति गीत गाता हूं, क्योंकि संध्या काल के इस मोहक दृश्य के सृष्टा भी तो तुम ही हो। जब चारों ओर रात्रि का सन्नाटा छा जाता है शुक्ल पक्ष की स्निग्ध चांदनी या कृष्ण पक्ष की कृष्णवसना अंधियारी द्यावा- पृथ्वी में व्याप्त हो जाती है, मुस्कुराती तरावली गगन में खिल उठती है, तब भी है परमेश्वर मैं तुम्हारी ही स्तुति वन्दना करता हूं क्योंकि प्रतिदिन रूप बदल-बदल कर आई हुई ज्योत्सनामयी रजनियों और अंधकार पूर्ण दिशाओं के जन्मदाता भी तो तुम ही हो।
    इस प्रकार विभिन्न कालों में किए जाते हुए यह मेरे सबल स्तोत्र तुम्हें रिझाते हैं, तुम्हें मेरी और खींच लाते हैं। तब मैं और तुम मिलकर कविगोष्ठी  रचाते हैं, मैं तुम्हारे स्तुति गाना गाता हूं, तुम मेरे लिए प्रेरक गीत गाते हो।

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