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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 93 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 93/ मन्त्र 5
यद्वा॑ प्रवृद्ध सत्पते॒ न म॑रा॒ इति॒ मन्य॑से । उ॒तो तत्स॒त्यमित्तव॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । वा॒ । प्र॒ऽवृ॒द्ध॒ । स॒त्ऽप॒ते॒ । न । म॒रै॒ । इति॑ । मन्य॑से । उ॒तो इति॑ । तत् । स॒त्यम् । इत् । तव॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्वा प्रवृद्ध सत्पते न मरा इति मन्यसे । उतो तत्सत्यमित्तव ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । वा । प्रऽवृद्ध । सत्ऽपते । न । मरै । इति । मन्यसे । उतो इति । तत् । सत्यम् । इत् । तव ॥ ८.९३.५
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 93; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 21; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 21; मन्त्र » 5
Bhajan -
वैदिक मन्त्र
यद् वा प्रवृद्ध सत्पते, न मरा इति मन्यसे।
उतो तत् सत्य मित्र तव।। ऋ• ८.९३.५
वैदिक भजन ११५५ वां
राग दरबारी कान्हडा
गायन समय मध्य रात्रि
ताल अध्धा
भाग १
जग में जो भी जन्मा एक दिन तो नष्ट होना है
नियम जब हैं शाश्वत फिर तो काहे का रोना है
हे इन्द्र हे अमर खिलाड़ी !जग तेरा ही खिलौना है।।
जग में......
सूरज चाँद नदियां
पर्वत सागर मेघ जंगल तारे(सारे)
एक दिन तो नष्ट ही होंगे,
नियमित नियम उजियारे
कोटि-कोटि वर्षों से है विद्यमान पिंड सारे
सबको विनाश लीला में शामिल तो होना है
जग में.........
सिंह गज पक्षी मृग मूस
कर जाएंगे सब कूच
सब प्राणियों में विलक्षण
मानव भी जाएंगे छूट
बड़े-बड़े सुरमा राजा
जिससे प्रजा थर्राती
ऐसे राजाओं को भी कालकवलित होना है
जग में..........
भाग २
जग में जो भी जन्मा एक दिन तो नष्ट होना है
नियम जब है शाश्वत फिर तो काहे का रोना है
हे इन्द्र हे अमर खिलाड़ी! जग तेरा ही खिलौना है
जग में......
सर्वोपरि हे प्रवृद्ध!
श्रेष्ठों के पालक सत्पति
अमर तत्व को हम पाते
होती जब तेरी अनुमति
अजर अमर है परमेश्वर !
वेदों की सत्य है कथनी
किन्तु आत्मा को जग में आना और जाना है
जग में.........
ब्रह्माण्ड में ना कोई अमर आप सा विद्योती
अमरता है अद्भुत आपकी आत्म-देह अनुयोगी
अखंडता अमरता आपकी सदा ही से सहयोगी
तेरे सत्य का स्वरूप अतिमनमोहना है
जग में...........
१२.१०.२०२३
१०.५५ रात्रि
शब्दार्थ:-
शाश्वत= सदा रहने वाला
मूस= चूहा
कूच= प्रस्थान रवानगी
विलक्षण= अनोखा, अद्भुत
काल कवलित= जो मृत्युका ग्रास बन जाए,मरा हुआ
विद्योती= प्रभावशाली
अनुयोगी= जोड़ने वाला
मनमोहना= मन को आकर्षित करने वाला
🕉🧘♂️ द्वितीय श्रृंखला का १४८ वां वैदिक भजन और अब तक का ११५५ वां वैदिक भजन
वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं! 👏
Vyakhya -
तू सचमुच अमर है
संसार में जो भी जन्म है उसे एक दिन नष्ट अवश्य होना है। यह जगत का शाश्वत नियम है। यह सूर्य चांद,सितारे, वन,पर्वत,सागर भूतल सब प्राकृतिक पदार्थ एक दिन विनाश के ग्रास हो जाएंगे। शत-शत कोटि वर्षों से जो पिंड सत्ता में विद्यमान हैं वे भी एक दिन विनाश लीला के पात्र बन जायेंगे। ये सींह,द्वीपी,गज,वराह, मृग पक्षी सर्प आदि सब प्राणी भी मृत्यु के मुख में समा जाएंगे। प्राणियों में सबसे उच्च और विलक्षण समझे जाने वाले समस्त मानव भी एक दिन कल कवलित हो जायेंगे। बड़े-बड़े सुरमा सम्राट जिनकी एक भृकुटी से ही जग थर्रा उठता था, विकराल काल के गाल में समा गए। अतः आज जो स्वयं को अमर समझ बैठे हैं,उनका यह विश्वास एक दिन सत्य सिद्ध होकर रहेगा और वह आंधी से शुष्क तरु के समान कालचक्र की गति से एक दिन उखड़कर गिर पडेंगे, और धूलिसात् हो जाएंगे, किसी भी व्यक्ति का यह मन्तव्य है कि मैं अमर हूं, सच्चाई की कसौटी पर खरा नहीं उतरता।
परन्तु है प्रवृद्ध! हे सर्वोपरि विराजमान ! हे सत्पति! हे श्रेष्ठों के पालक! है इन्द्र परमात्मन्! आप सचमुच अमर हैं। आप जो अपने विषय में यह मानते हैं कि मैं मरता नहीं हूं सर्वथा सत्य है। यूं तो दार्शनिकों की दृष्टि में पृथ्वी-अप- तेज-वायु के असंख्य परमाणु, आकाश काल, दिक्, आत्मा, मन आदि भी नित्य और अमर माने जाते हैं ,पर आपके सम्मुख इनका अमृत्व बिल्कुल नगण्य हैं। कहां तो अचेतन परमाणु, आकाश, काल आदि और कहां चैतन्य के भंडार तथा अचेतनों को चेतना देने वाले आप !
आत्मा यद्यपि चेतन भी है तथा अमर भी है और आत्मा की अमरता को वेद उपनिषद् आदि शास्त्र बार-बार उजागर करते हैं,तो भी आत्मा स्वभावत: अमर होता हुआ भी प्राय: नैतिक मृत्युऔं के वशीभूत हो जाता है; अतः उसकी अमरता भी आपकी तुलना में तुच्छ है। इस प्रकार के अजर,अमर,अनादि,अनन्त, नित्य सर्वगत सच्चिदानंद परब्रह्म परमात्मन् अमरता तो आपकी ही सत्य है। आप जैसा अमर ब्रह्माण्ड में कोई नहीं है । हे देवाधिदेव ! सचमुच आप ही अमर हैं, आप ही अमर हैं। अन्य सबका अमरता का गर्व आपके सम्मुख उपहसनीय है।
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