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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 62 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 62/ मन्त्र 10
    ऋषिः - जमदग्निः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒यं विच॑र्षणिर्हि॒तः पव॑मान॒: स चे॑तति । हि॒न्वा॒न आप्यं॑ बृ॒हत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । विऽच॑र्षणिः । हि॒तः । पव॑मानः । सः । चे॒त॒ति॒ । हि॒न्वा॒नः । आप्य॑म् । बृ॒हत् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं विचर्षणिर्हितः पवमान: स चेतति । हिन्वान आप्यं बृहत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । विऽचर्षणिः । हितः । पवमानः । सः । चेतति । हिन्वानः । आप्यम् । बृहत् ॥ ९.६२.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 62; मन्त्र » 10
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 25; मन्त्र » 5

    Bhajan -

    वैदिक मन्त्र
    अयं विचर्षणिर्हित: पवमान:सचेतनता ।
    हिन्वान आप्यं बृहत्।।
    साम•५०८ ऋग्वेद ९.६२.१०
                       ‌   वैदिक भजन ११०० वां
                           राग मिश्र शिवरंजनी
                            ताल कहरवा भाग १
    वेद वाणी हृदय की वाणी 
    बनके तू छा जाना 
    उपासना करते करते 
    स्वयं अचल हो जाना 
    वेद वाणी...... 
    मानव की बुद्धि संकुचित है (२)
    देखता आज का हित 
    कल का नहीं है (२)
    क्षेत्र हितों का विशेष 
    हित करना हित करना 
    जागना और जगाना 
    वेद वाणी........
    व्यक्ति वंश देशों की ना सोचो (२) 
    एक साथ सब जागो लोगों (२) 
    रखो ना संकुचित दृष्टि, 
    मानवो बन्धुओ 
    समदृष्टि को जगाना
    वेद वाणी ........
    वनस्पति औषध पशु पक्षी (२) 
    मानव सब परिवार सदस्य हैं (२) 
    है बन्धुत्व के नाते 
    हित विचार, प्रीत परिवार 
    सच्ची प्रीत निभाना 
    वेद वाणी.......
    जीव बन्धु को बिन्दु बनाकर (२) 
    मोती की माला सजाओ (२) 
    जगत -जीव है सिंधु
    उमड़ रहा, सिंधु बड़ा, 
    बिनु बन्धुत्व को जानो
    वेद वाणी........
                        भाग २
    वेद वाणी हृदय वाणी 
    बन के तू छा जाना
    उपासना करते-करते 
    स्वयं अचल हो जाना
    वेद वाणी.....
    महातत्व का दर्शन होता 
    जिसको कहते हैं आत्मदर्शन (२)
    सर्व दृष्टा को पहचाने 
    वह अपना दूजों का 
    बना हितकारी सयाना
    वेद वाणी.....
    परहित कामना है बहर(२)
    चलती बहती ये उमंग लहर (२) 
    है यह स्वयं पृथु पावन
    पवित्रता पवित्रता, जीवन रखे सुहाना
    वेद वाणी.......
    गति स्थिति में है साम्य अवस्था (२)
    हृदयी आर्द्रता नम्र भावना (२)
    अचल  भावना हितकी
    भावना कामना 
    सीखें कर्तव्य निभाना
    वेद वाणी.....
    बोलो क्या मैं हूं विचर्षणि(२)
    क्या हित साधक पवित कर्मणा (२)
    साक्षी हूं बन्धु लहर का(२)
    ऐ मना ! मन बना 
    गति-मति लहर जगाना 
    वेद वाणी........
      ‌‌                शब्दार्थ
    अचल=गतिहीन
    संकुचित=संकोच युक्त, लज्जित
    बिनु=असीम शक्ति के साथ बनाया
    सर्वदृष्टा=सब कुछ देखने वाला परमेश्वर
    पृथु=महत्, विस्तृत
    आर्द्रता=कोमलता, गीलापन
    विचर्षण=दूरदर्शी
    पवित=पवित्र

    🕉🧘‍♂️द्वितीय श्रृंखला का ९३ वां वैदिक भजन 
    और अब तक का ११०० वां वैदिक भजन🎧
     
    श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं! 🙏

    Vyakhya -

    वसुधैव कुटुम्बकम्
    मनुष्य की बुद्धि संकुचित है। वह आज का हित देखता है कल का नहीं। निकट की भलाई पर ध्यान देता है दूर की भलाई पर नहीं वास्तव में भलाई का क्षेत्र ना। समय से सीमित हो सकता है ना देश से हित करना हो तो किसी व्यक्ति विशेष का या वंश विशेष अथवा देश-विदेश का अन्य व्यक्तियों अन्य वंशों तथा अन्य देशों से अलग होकर नहीं किया जा सकता है सच तो यह है कि इस विश्व के सभी प्राणी मनुष्य पशु पक्षी यहां तक की वनस्पति और औषधि आदि भी विस्तृत बंधुत्व के नाते एक बड़े परिवार के सदस्य हैं जीवन रस की एक लहर इन सब जीव बंधुओं को बिंदु बनाकर बनाकर मोतियों की एक सुंदर माला में पिरोए हुए हैं। सजीव संसार एक बड़ा समुद्र है जो निरंतर ठाट ठे मार रहा है।
    आत्मदर्शन किसी महान तत्व का दर्शन होता है वही विचर्षणी--सर्वद्रष्टा है जिसने इस महान तत्व को पहचाना। वही अपना तथा दूसरों का हितकारी हो सकता है वह खड़ा हो पड़ा हो जीव जात की हित कामना की लहर पर सवार हुआ निरंतर चलता सा बहता सा दिखाई देता है। वह स्वयं पवित्र है और अपने पवित्र विचार से संसार भर में पवित्रता का संचार करता है उसकी गति और स्थिति दोनों अवस्थाओं में हृदय की आर्द्रता काम करती ही रहती है वहां परोपकार में दृढ़ है अचल है उसे उसके कर्तव्य के पथ से कौन बिगाड़ सकता है? वह चट्टान की तरह मजबूत है उसका जीवन उज्जवल जीवन का प्रचार है, संचार है वह बहती नदिया है,खड़ा हुआ पानी नहीं तदेजति "तन्नैजति"।
    "अचल गति वाले"की उपासना करते करते वह स्वयं अचल हो गया है गतिमान हो गया है।
    "अयम्"यह जन अर्थात् में। क्या मैं विचर्षणि हूं ?"हित हूं" "पवमान हू"इस महान बंधुत्व को व्यापक लहर का साक्षी मैं हूं। इस लहर को अपनी गति मति से ही लाता हूं? प्रेरित करता हूं?वेद कहता   है----हां ! मेरे हृदय! तू भी तो हां या न कह।
    वेद वाणी ! मेरे हृदय की वाणी बन जा
     

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