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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 1
    ऋषिः - शशकर्णः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः

    आ नू॒नम॑श्विना यु॒वं व॒त्सस्य॑ गन्त॒मव॑से । प्रास्मै॑ यच्छतमवृ॒कं पृ॒थु च्छ॒र्दिर्यु॑यु॒तं या अरा॑तयः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । नू॒नम् । अ॒श्वि॒ना॒ । यु॒वम् । व॒त्सस्य॑ । ग॒न्त॒म् । अव॑से । प्र । अस्मै॑ । य॒च्छ॒त॒म् । अ॒वृ॒कम् । पृ॒थु । छ॒र्दिः । यु॒यु॒तम् । याः । अरा॑तयः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ नूनमश्विना युवं वत्सस्य गन्तमवसे । प्रास्मै यच्छतमवृकं पृथु च्छर्दिर्युयुतं या अरातयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । नूनम् । अश्विना । युवम् । वत्सस्य । गन्तम् । अवसे । प्र । अस्मै । यच्छतम् । अवृकम् । पृथु । छर्दिः । युयुतम् । याः । अरातयः ॥ ८.९.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 30; मन्त्र » 1

    Word Meaning -
    हे नगराधिपति तथा सेनपति तुम दोनो राष्ट्र में बसे प्रजाजनों की रक्षा के लिए अवश्य प्रजाजनों में आया जाया करो.इस प्रजाजन के लिये निवास योग्य गृहों की व्यवस्था करो,जो गृह बड़े बड़े हों, चोर डाकू आक्रमण न कर सकें. और जो राष्ट्र के शत्रु हैं, उन्हें राष्ट्र से दूर कर दो. Keep in close contact with public, ensure adequate and secure housing for every person, and provide protection from destructive elements.

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