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ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 112/ मन्त्र 1
ना॒ना॒नं वा उ॑ नो॒ धियो॒ वि व्र॒तानि॒ जना॑नाम् । तक्षा॑ रि॒ष्टं रु॒तं भि॒षग्ब्र॒ह्मा सु॒न्वन्त॑मिच्छ॒तीन्द्रा॑येन्दो॒ परि॑ स्रव ॥
स्वर सहित पद पाठना॒ना॒नम् । वै । ऊँ॒ इति॑ । नः॒ । धियः॑ । वि । व्र॒तानि॑ । जना॑नाम् । तक्षा॑ । रि॒ष्टम् । रु॒तम् । भि॒षक् । ब्र॒ह्मा । सु॒न्वन्त॑म् । इ॒च्छ॒ति॒ । इन्द्रा॑य । इ॒न्दो॒ इति॑ । परि॑ । स्र॒व॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नानानं वा उ नो धियो वि व्रतानि जनानाम् । तक्षा रिष्टं रुतं भिषग्ब्रह्मा सुन्वन्तमिच्छतीन्द्रायेन्दो परि स्रव ॥
स्वर रहित पद पाठनानानम् । वै । ऊँ इति । नः । धियः । वि । व्रतानि । जनानाम् । तक्षा । रिष्टम् । रुतम् । भिषक् । ब्रह्मा । सुन्वन्तम् । इच्छति । इन्द्राय । इन्दो इति । परि । स्रव ॥ ९.११२.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 112; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
Subject - Nurturing of Talents प्राकृतिक गुणों का विकास हो
Word Meaning -
Humans manifest different traits. Work with Physical Objects; One has an inclination to be skilled with physical objects and techniques. Work with living Objects; One wants to become a healer, a doctor to bring comfort by cure to others. Work on Minds; One wants to be a learned person interested in bringing bounties of wisdom to others. The motivating force in humans manifests in various forms, and needs to be nurtured accordingly. Natural Talents may flower मनुष्य भिन्न भिन्न प्रकृति के हैं. कोई शिल्पकार – वस्तुओं के स्वरूप को सुधारने वाला बनना चाहता है; तो कोई वैद्य- भिषक बन कर प्राणियों के स्वास्थ्य मे सुधार लाना चाहता है; तो अन्य ज्ञान का विस्तार कर के समाज में दिव्यता की उपलब्धियों के लिए शिक्षा यज्ञादि अनुष्ठान कराना चाहता है.इन सब प्रकार की वृत्तियों के विकास के अवसर उपलब्ध कराने चाहिएं. ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए समाज का विभिन्न प्रकार के कार्यों के ज्ञान का सामर्थ्य बढ़ाओ