ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 22/ मन्त्र 2
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
या सु॒रथा॑ र॒थीत॑मो॒भा दे॒वा दि॑वि॒स्पृशा॑। अ॒श्विना॒ ता ह॑वामहे॥
स्वर सहित पद पाठया । सु॒ऽरथा॑ । र॒थिऽत॑मा । उ॒भा । दे॒वा । दि॒वि॒ऽस्पृशा॑ । अ॒श्विना॑ । ता । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
या सुरथा रथीतमोभा देवा दिविस्पृशा। अश्विना ता हवामहे॥
स्वर रहित पद पाठया। सुऽरथा। रथिऽतमा। उभा। देवा। दिविऽस्पृशा। अश्विना। ता। हवामहे॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 22; मन्त्र » 2
अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
Meaning -
We invoke the Ashvins, divine master makers of the chariot, most powerful energies of motion, water and fire, fire and earth, who can touch the skies.