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ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 54/ मन्त्र 1
वास्तो॑ष्पते॒ प्रति॑ जानीह्य॒स्मान्त्स्वा॑वे॒शो अ॑नमी॒वो भ॑वा नः। यत्त्वेम॑हे॒ प्रति॒ तन्नो॑ जुषस्व॒ शं नो॑ भव द्वि॒पदे॒ शं चतु॑ष्पदे ॥१॥
स्वर सहित पद पाठवास्तोः॑ । प॒ते॒ । प्रति॑ । जा॒नी॒हि॒ । अ॒स्मान् । सु॒ऽआ॒वे॒शः । अ॒न॒मी॒वः । भ॒व॒ । नः॒ । यत् । त्वा॒ । ईम॑हे । प्रति॑ । तत् । नः॒ । जु॒ष॒स्व॒ । शम् । नः॒ । भ॒व॒ । द्वि॒ऽपदे॑ । शम् । चतुः॑ऽपदे ॥
स्वर रहित मन्त्र
वास्तोष्पते प्रति जानीह्यस्मान्त्स्वावेशो अनमीवो भवा नः। यत्त्वेमहे प्रति तन्नो जुषस्व शं नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे ॥१॥
स्वर रहित पद पाठवास्तोः। पते। प्रति। जानीहि। अस्मान्। सुऽआवेशः। अनमीवः। भव। नः। यत्। त्वा। ईमहे। प्रति। तत्। नः। जुषस्व। शम्। नः। भव। द्विऽपदे। शम्। चतुःऽपदे ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 54; मन्त्र » 1
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 21; मन्त्र » 1
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 21; मन्त्र » 1
मन्त्रार्थ -
(वास्तोष्पते) हे वास्तु-वासस्थान-घर के पालक रक्षक घर के अन्दर सब ऋतुओं में प्राप्त होने वाले वायु “निरुक्तानुसार मध्यस्थानीय देव"(अस्मान् प्रति जानीहि) हमें सावधान रख (नः स्त्रावेशः-अनमीवः-भव) हमारे लिए अच्छा आश्रय देने देनेवाला और अरोग-रोगरहित हो (यत् त्वा-ईमहे) जब हम तुझे श्वास द्वारा लेना चाहते हैं "ईमहे याञ्चाकर्मा" (निघं० ३।१९) (तत्-नः प्रति जुषस्व ) तब तू हमें प्रतिसेवित करता है-या तृप्त करता है ('लडर्थे लोट') (नः-शं द्विपदे चतुष्पदेशं भव) हमारे लिए कल्याणकारी हमारे अन्य दोपैर वाले और चार पैर वाले के लिए कल्याणकारी हो॥ आधिभौतिक दृष्टि से- हे घर के वृद्ध पालक जन ! तू हमें सावधान करता रह, हमारा अच्छा आश्रय हो और हमें रोगों से रहित रहने का उपदेश देने वाला हो, जब हम कल्याणवचनश्रवणार्थ तुझे प्रार्थित करें तो तू भी हमें अपने वचनामृत सुना कर तृप्त कर, इस प्रकार हमारा कल्याणकारी हो और हमारे दो पैर वाले तथा चार पैर वाले पशु के लिए भी कल्याण करने वाला सिद्ध होता रह ॥१॥
टिप्पणी -
“गृहस्य पालयितर्देव” ( सायणः )
विशेष - ऋषिः— वसिष्ठः (अत्यधिक वसने वाला-बहुत काल तक घर में रहने वाला जन) देवता- वास्तोष्पति: (घर का पालक-रक्षक सुव्यवस्थित वातावरण)
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