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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1809
ऋषिः - नीपातिथिः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
7
आ꣢ त्वा꣣ ग्रा꣢वा꣣ व꣡द꣢न्नि꣣ह꣢ सो꣣मी꣡ घोषे꣢꣯ण वक्षतु । दि꣣वो꣢ अ꣣मु꣢ष्य꣣ शा꣡स꣢तो꣣ दि꣡वं꣢ य꣣य꣡ दि꣢वावसो ॥१८०९॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢ । त्वा꣣ । ग्रा꣡वा꣢꣯ । व꣡द꣢꣯न् । इ꣣ह꣢ । सो꣣मी꣢ । घो꣡षे꣢꣯ण । व꣣क्षतु । दि꣣वः꣢ । अ꣣मु꣡ष्य꣢ । शा꣡स꣢꣯तः । दि꣡व꣢꣯म् । य꣣य꣢ । दि꣣वावसो । दिवा । वसो ॥१८०९॥
स्वर रहित मन्त्र
आ त्वा ग्रावा वदन्निह सोमी घोषेण वक्षतु । दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो ॥१८०९॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । त्वा । ग्रावा । वदन् । इह । सोमी । घोषेण । वक्षतु । दिवः । अमुष्य । शासतः । दिवम् । यय । दिवावसो । दिवा । वसो ॥१८०९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1809
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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विषय - आगे फिर परमात्मा को पुकारा जा रहा है।
पदार्थ -
हे जगदीश्वर ! (इह) इस देहपुरी में (सोमी) श्रद्धारस से भरा हुआ (ग्रावा) पूजक जीवात्मा (वदन्) स्तोत्रों का उच्चारण करता हुआ (घोषेण) स्वागत-शब्द से (त्वा) आपको (आ वक्षतु) अपने पास लाये। हे (दिवावसो) दीप्तिधन परमात्मन् ! (दिवः) तेजोमयी देहपुरी के (शासतः) शासक (अमुष्य) इस जीवात्मा की (दिवम्) तेजोमयी देहपुरी में, आप (यय) आओ ॥३॥
भावार्थ - जो हार्दिक स्वागत-वचनों के साथ परमात्मा को पुकारता है, उसकी प्रार्थना को वह अवश्य सुनता है ॥३॥
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