Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 748
ऋषिः - नारदः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - उष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम -
6
त꣡मु꣢ हुवे꣣ वा꣡ज꣢सातय꣣ इ꣢न्द्रं꣣ भ꣡रा꣢य शु꣣ष्मि꣡ण꣢म् । भ꣡वा꣢ नः सु꣣म्ने꣡ अन्त꣢꣯मः꣣ स꣡खा꣢ वृ꣣धे꣢ ॥७४८॥
स्वर सहित पद पाठतम् । उ꣣ । हुवे । वा꣡ज꣢꣯सातये । वा꣡ज꣢꣯ । सा꣣तये । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । भ꣡रा꣢꣯य । शु꣣ष्मि꣡ण꣢म् । भ꣡व꣢꣯ । नः꣣ । सुम्ने꣢ । अ꣡न्त꣢꣯मः । स꣡खा꣢꣯ । स । खा꣡ । वृधे꣢ ॥७४८॥
स्वर रहित मन्त्र
तमु हुवे वाजसातय इन्द्रं भराय शुष्मिणम् । भवा नः सुम्ने अन्तमः सखा वृधे ॥७४८॥
स्वर रहित पद पाठ
तम् । उ । हुवे । वाजसातये । वाज । सातये । इन्द्रम् । भराय । शुष्मिणम् । भव । नः । सुम्ने । अन्तमः । सखा । स । खा । वृधे ॥७४८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 748
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
Acknowledgment
विषय - आगे फिर उसी विषय का वर्णन है।
पदार्थ -
मैं विद्यार्थी (वाजसातये) विद्या-बलों तथा आत्म-बलों की प्राप्ति करानेवाले (भराय) अध्ययनाध्यापन रूप यज्ञ के लिए (तम् उ) उस (शुष्मिणम्) आत्म-बल तथा विद्या-बल से युक्त (इन्द्रम्) आचार्य को (हुवे) पुकारता हूँ। हे आचार्यवर ! आप (सुम्ने) सुख के लिए और (वृधे) उन्नति के लिए (नः) हमारे (अन्तमः) निकटतम (सखा) मित्र (भव) होवो ॥३॥
भावार्थ - निकटता, सखिभाव और सौहार्द के साथ सब लोक-विद्याओं और ब्रह्म-विद्याओं की शिक्षा देता हुआ तथा सुख प्रदान करता हुआ आचार्य छात्रों की चहुँमुखी उन्नति करता रहे ॥३॥ इस खण्ड में परमात्मा, आत्मोद्बोधन एवं गुरुशिष्य विषयों का तथा प्रसङ्गतः शिल्पविज्ञान का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति जाननी चाहिए ॥ द्वितीय अध्याय में तृतीय खण्ड समाप्त ॥
इस भाष्य को एडिट करें