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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 10
ऋषिः - वामदेवः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
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अ꣢ग्ने꣣ वि꣡व꣢स्व꣣दा꣡ भ꣢रा꣣स्म꣡भ्य꣢मू꣣त꣡ये꣢ म꣣हे꣢ । दे꣣वो꣡ ह्यसि꣢꣯ नो दृ꣣शे꣢ ॥१०

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡ग्ने꣢꣯ । वि꣡व꣢꣯स्वत् । वि । व꣣स्वत् । आ꣢ । भ꣣र । अस्म꣡भ्य꣢म् । ऊ꣣त꣡ये꣢ । म꣣हे꣢ । दे꣣वः꣢ । हि । अ꣡सि꣢꣯ । नः꣢ । दृशे꣢ ॥१०॥


स्वर रहित मन्त्र

अग्ने विवस्वदा भरास्मभ्यमूतये महे । देवो ह्यसि नो दृशे ॥१०


स्वर रहित पद पाठ

अग्ने । विवस्वत् । वि । वस्वत् । आ । भर । अस्मभ्यम् । ऊतये । महे । देवः । हि । असि । नः । दृशे ॥१०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 10
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1;
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पदार्थ -
(अग्ने) हे ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मन्! तू (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (महे-ऊतये) महती रक्षा—अखण्डसुखसम्पत्ति—मुक्ति के निमित्त (विवस्वत्-आभर) अभ्यास और वैराग्य से साध्य अपने विशेष प्रकाशमय वास वाले स्वरूप को पहुँचा—प्राप्त करा (दृशे) दर्शन करने—साक्षात् करने के लिये (नः-देवः-हि-असि) तू हमारा इष्टदेव ही है।

भावार्थ - परमात्मन्! हमारे लिये जो महती रक्षा अखण्ड सुखसम्पत्ति मुक्ति है उसकी प्राप्ति के लिये अभ्यास और वैराग्य के द्वारा या सगुण स्तुति और निर्गुण स्तुति के द्वारा सिद्ध होने वाला तेरा विशेष प्रकाशमय स्वरूप है उसे आभरित कर—प्राप्त करा, वह हमारे दर्शन के लिये—साक्षात् करने के लिये है हम उसके अर्थी हैं और तू हमारा इष्टदेव है, फिर हम उस दर्शन से वञ्चित रह सकें और उसके साधनरूप अभ्यास और वैराग्य तथा सगुण स्तुति निर्गुण स्तुति को तीव्र संवेग से कर रहे हैं अवश्य तेरे दर्शन कर सकेंगे कारण कि हम मनुष्य हैं मननशील हैं तेरे दर्शन के उत्सुक हैं, पशु केवल संसार को देखते हैं मनन नहीं करते, उनकी दृष्टि स्थूल है उसमें मनन नहीं है, हमारी दृष्टि में मनन है, यदि मनन न हो तो हम पशु जैसे हो जावें तेरे दर्शन के विना। संसार में मानव आया, परन्तु तेरा दर्शन न पा सका तो मानव जीवन का लाभ क्या?॥१०॥

विशेष - ऋषिः—वामदेवः (वननीय*5 उपासनीय देव परमात्मा वाला उपासक)॥<br>

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