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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1040
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
म꣣हा꣡न्तं꣢ त्वा म꣣ही꣡रन्वापो꣢꣯ अर्षन्ति꣣ सि꣡न्ध꣢वः । य꣡द्गोभि꣢꣯र्वासयि꣣ष्य꣡से꣢ ॥१०४०॥
स्वर सहित पद पाठम꣣हा꣡न्त꣢म् । त्वा꣣ । महीः꣢ । अ꣡नु꣢꣯ । आ꣡पः꣢꣯ । अ꣣र्षन्ति । सि꣡न्ध꣢꣯वः । यत् । गो꣡भिः꣢꣯ । वा꣣सयिष्य꣡से꣢ ॥१०४०॥
स्वर रहित मन्त्र
महान्तं त्वा महीरन्वापो अर्षन्ति सिन्धवः । यद्गोभिर्वासयिष्यसे ॥१०४०॥
स्वर रहित पद पाठ
महान्तम् । त्वा । महीः । अनु । आपः । अर्षन्ति । सिन्धवः । यत् । गोभिः । वासयिष्यसे ॥१०४०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1040
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 4
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 4
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पदार्थ -
(त्वा महान्तम्-अनु) तुझ महान् शान्तस्वरूप परमात्मा की ओर (महीः-आपः सिन्धवः-अर्षन्ति) भारी संख्या में बहुतेरे उपासक जन*14 स्यन्दमान—दौड़ते हुए प्राप्त होते हैं (यद्) जब तू (गोभिः-वासयिष्यसे) वाणियों से उपदेशवचनों से या स्तुतिवाणियों से—उनके प्रतिफल आनन्द से उन्हें वासित कर देता है॥४॥
टिप्पणी -
[*14. “मनुष्या वा आपः” [श॰ ७.३.१.२०]।]
विशेष - <br>
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