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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1082
ऋषिः - अमहीयुराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
स꣡मिन्द्रे꣢꣯णो꣣त꣢ वा꣣यु꣡ना꣢ सु꣣त꣡ ए꣢ति प꣣वि꣢त्र꣣ आ꣢ । स꣡ꣳ सूर्य꣢꣯स्य र꣣श्मि꣡भिः꣢ ॥१०८२॥
स्वर सहित पद पाठस꣢म् । इ꣡न्द्रे꣢꣯ण । उ꣣त꣢ । वा꣣यु꣡ना꣢ । सु꣣तः꣢ । ए꣣ति । प꣣वि꣡त्रे꣢ । आ । सम् । सू꣡र्य꣢꣯स्य । र꣣श्मि꣡भिः꣢ ॥१०८२॥
स्वर रहित मन्त्र
समिन्द्रेणोत वायुना सुत एति पवित्र आ । सꣳ सूर्यस्य रश्मिभिः ॥१०८२॥
स्वर रहित पद पाठ
सम् । इन्द्रेण । उत । वायुना । सुतः । एति । पवित्रे । आ । सम् । सूर्यस्य । रश्मिभिः ॥१०८२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1082
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(सुतः) उपासना द्वारा निष्पन्न—साक्षात् हुआ सोम—शान्तस्वरूप परमात्मा (पवित्रे) प्राप्तिस्थान हृदय में (इन्द्रेण-उत वायुना सम्-आ-एति) आत्मा से समागम करता है पुनः आयु*61 के साथ भी (सूर्यस्य रश्मिभि सम् आ एति) हृदय के*62 प्राणों के*63 साथ समागम करता है आत्मा में परमात्मा का समागमलाभ हुआ तो आत्मा की अमर आयु मुक्ति की आयु और सांसारिक जीवन की प्राप्ति होती है॥२॥
टिप्पणी -
[*61. “आयुर्वा एष यद् वायुः” [ऐ॰आ॰ २.४.३]।] [*62. “असौ वा आदित्यो हृदयम्” [श॰ ९.१.२.९०]।] [*63. “प्राणा रश्मयः” [तै॰ ३.२.५.२]।]
विशेष - <br>
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