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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1126
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
ना꣢भा꣣ ना꣡भिं꣢ न꣣ आ꣡ द꣢दे꣣ च꣡क्षु꣢षा꣣ सू꣡र्यं꣢ दृ꣣शे꣢ । क꣣वे꣡रप꣢꣯त्य꣣मा꣡ दु꣢हे ॥११२६॥
स्वर सहित पद पाठना꣡भा꣢꣯ । ना꣡भि꣢꣯म् । नः꣣ । आ꣢ । द꣣दे । च꣡क्षु꣢꣯षा । सू꣡र्य꣢꣯म् । दृ꣡शे꣢ । क꣣वेः꣢ । अ꣡प꣢꣯त्यम् । आ । दु꣣हे ॥११२६॥
स्वर रहित मन्त्र
नाभा नाभिं न आ ददे चक्षुषा सूर्यं दृशे । कवेरपत्यमा दुहे ॥११२६॥
स्वर रहित पद पाठ
नाभा । नाभिम् । नः । आ । ददे । चक्षुषा । सूर्यम् । दृशे । कवेः । अपत्यम् । आ । दुहे ॥११२६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1126
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 11
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 11
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 11
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 11
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पदार्थ -
(नाभिं नः-नाभा-आददे) विश्व को अपने साथ बाँधने वाले*30 विश्वकेन्द्रभूत तथा विश्व के मध्यरूप*31 सोम शान्तस्वरूप परमात्मा को हमारे—अपने मध्य में—अन्दर ग्रहण करें अपनावें या आधान करें*32 (चक्षुषा सूर्यम्-आदृशे) पुनः ज्ञाननेत्र से सरणशील सर्वत्र व्यापनशील सोम—शान्त परमात्मा को समन्तात् देख सकूँ साक्षात् कर सकूँ (कवेः-अपत्यम्-आदुहे) स्तुतिकर्ता उपासक के न गिरानेवाले*33—रक्षक सोम—परमात्मा को समन्तरूप से दुह लूँ—अपने अन्दर समा लूँ या क्रान्तदर्शी परमात्मा के अपत्यरूप—उससे प्रादुर्भूत आनन्दरस को दुह लूँ॥११॥
टिप्पणी -
[*30. “नाभिः सन्नहनात्” [निरु॰ ४.२१]।] [*31. “मध्यं वै नाभिः” [श॰ १.१.२.२]।] [*32. “दण्डो ददतेर्धारयतिकर्मणः” [निरु॰ २.२]।] [*33. “अपत्यं नानेन पततीति” [निरु॰ ३.१]।]
विशेष - <br>
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