Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1138
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
8
आ꣢ म꣣न्द्र꣡मा वरे꣢꣯ण्य꣣मा꣢꣫ विप्र꣣मा꣡ म꣢नी꣣षि꣡ण꣢म् । पा꣢न्त꣣मा꣡ पु꣢रु꣣स्पृ꣡ह꣢म् ॥११३८॥
स्वर सहित पद पाठआ । म꣣न्द्र꣢म् । आ । व꣡रे꣢꣯ण्यम् । आ । वि꣡प्र꣢꣯म् । वि । प्र꣣म् । आ꣢ । म꣣नीषि꣡ण꣢म् । पा꣡न्त꣢꣯म् । आ । पु꣣रुस्पृ꣡ह꣢म् । पु꣣रु । स्पृ꣡ह꣢꣯म् ॥११३८॥
स्वर रहित मन्त्र
आ मन्द्रमा वरेण्यमा विप्रमा मनीषिणम् । पान्तमा पुरुस्पृहम् ॥११३८॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । मन्द्रम् । आ । वरेण्यम् । आ । विप्रम् । वि । प्रम् । आ । मनीषिणम् । पान्तम् । आ । पुरुस्पृहम् । पुरु । स्पृहम् ॥११३८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1138
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 11
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 11
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 11
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 11
Acknowledgment
पदार्थ -
(मन्द्रम्-आ) हे सोम—शान्तस्वरूप परमात्मन्! तुझ हर्षकर*52 आनन्दप्रद को हम समन्तरूप से वरते हैं—अपने अन्दर धारण करते हैं*53 (वरेण्यम्-आ) वरने योग्य—अवश्य वरणीय को अपने अन्दर समन्तरूप से धारण करते हैं (विप्रम्-आ) विशेष कामनापूरक को अपने अन्दर धारण करते हैं (मनीषिणम्-आ) स्वतः ज्ञानवान् को अपनाते हैं (पान्तम्-आ पुरुस्पृहम्) रक्षक को तथा बहुत चाहने योग्य को अपनाते हैं॥११॥
टिप्पणी -
[*52. “मदि स्तुतिमोदः....” [भ्वादि॰]।] [*53. ‘आ’ उपसर्ग पूर्वमन्त्र से ‘वृणीमहे’ क्रिया को आकर्षित करता है।]
विशेष - <br>
इस भाष्य को एडिट करें