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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1145
ऋषिः - यजत आत्रेयः
देवता - मित्रावरुणौ
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
ता꣡ नः꣢ शक्तं꣣ पा꣡र्थि꣢वस्य म꣣हो꣡ रा꣣यो꣢ दि꣣व्य꣡स्य꣢ । म꣡हि꣢ वां क्ष꣣त्रं꣢ दे꣣वे꣡षु꣢ ॥११४५॥
स्वर सहित पद पाठता । नः꣣ । शक्तम् । पा꣡र्थि꣢꣯वस्य । म꣣हः꣢ । रा꣣यः꣢ । दि꣣व्य꣡स्य꣢ । म꣡हि꣢꣯ । वा꣣म् । क्षत्र꣢म् । दे꣣वे꣡षु꣢ ॥११४५॥
स्वर रहित मन्त्र
ता नः शक्तं पार्थिवस्य महो रायो दिव्यस्य । महि वां क्षत्रं देवेषु ॥११४५॥
स्वर रहित पद पाठ
ता । नः । शक्तम् । पार्थिवस्य । महः । रायः । दिव्यस्य । महि । वाम् । क्षत्रम् । देवेषु ॥११४५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1145
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(ता) वह अभ्युदय का प्रेरक मोक्षार्थ अपनी ओर वरने वाला परमात्मा (नः) हम उपासकों के लिए (पार्थिवस्य महः-रायः) पृथिवी सम्बन्धी महान् पोष अभ्युदय साधन के (दिव्यस्य) मोक्षधाम सम्बन्धी महान् आनन्दधन निःश्रेयस रूप के प्रदान करने में (शक्तम्) समर्थ है (वाम्) तुम्हारा (क्षत्रं देवेषु महि) यह धनदान या बल मुमुक्षु उपासकों में महनीय—प्रशंसनीय है॥३॥
विशेष - <br>
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