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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1199
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
दि꣣वो꣡ नाभा꣢꣯ विचक्ष꣣णो꣢ऽव्या꣣ वा꣡रे꣢ महीयते । सो꣢मो꣣ यः꣢ सु꣣क्र꣡तुः꣢ क꣣विः꣢ ॥११९९॥
स्वर सहित पद पाठदि꣣वः꣢ । ना꣡भा꣢꣯ । वि꣣चक्षणः꣢ । वि꣣ । चक्षणः꣢ । अ꣡व्याः꣢꣯ । वा꣡रे꣢꣯ । म꣣हीयते । सो꣡मः꣢꣯ । यः । सु꣣क्र꣡तुः꣢ । सु꣣ । क्र꣡तुः꣢꣯ । क꣣विः꣢ ॥११९९॥
स्वर रहित मन्त्र
दिवो नाभा विचक्षणोऽव्या वारे महीयते । सोमो यः सुक्रतुः कविः ॥११९९॥
स्वर रहित पद पाठ
दिवः । नाभा । विचक्षणः । वि । चक्षणः । अव्याः । वारे । महीयते । सोमः । यः । सुक्रतुः । सु । क्रतुः । कविः ॥११९९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1199
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
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पदार्थ -
(यः) जो (विचक्षणः) विशेष द्रष्टा, अन्तर्यामी (सुक्रतुः) उत्तम कर्ता—विश्वरचयिता (कविः) क्रान्तदर्शी—सर्वज्ञ (सोमः) शान्तस्वरूप परमात्मा है, वह (दिवः-नाभा) द्युलोक के—मोक्ष के१ मध्य में२ (अव्याः-वारे) पृथिवी के वरनेवाले अन्तःस्तर में—पार्थिव शरीर के वरनेवाले आधार हृदय में (महीयते) महान् रूप में विराजमान है। वही परमात्मा द्युलोक के मध्य में है, वही पृथिवी के गर्भ में है, वही मोक्षधाम में है, वही शरीरस्थ हृदय में है। हृदय में ढूँढो तो मोक्ष में पाओ, मोक्ष में पाना चाहो तो हृदय में देखो॥४॥
विशेष - <br>
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