Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1260
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः स देवरातः कृत्रिमो वैश्वामित्रः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
ए꣣ष꣢ दे꣣वो꣡ वि꣢प꣣न्यु꣢भिः꣣ प꣡व꣢मान ऋता꣣यु꣡भिः꣢ । ह꣢रि꣣र्वा꣡जा꣢य मृज्यते ॥१२६०॥
स्वर सहित पद पाठए꣡षः꣢ । दे꣣वः꣢ । वि꣣पन्यु꣡भिः꣢ । प꣡व꣢꣯मानः । ऋ꣣तायु꣡भिः꣢ । ह꣡रिः꣢꣯ । वा꣡जा꣢꣯य । मृ꣣ज्यते ॥१२६०॥
स्वर रहित मन्त्र
एष देवो विपन्युभिः पवमान ऋतायुभिः । हरिर्वाजाय मृज्यते ॥१२६०॥
स्वर रहित पद पाठ
एषः । देवः । विपन्युभिः । पवमानः । ऋतायुभिः । हरिः । वाजाय । मृज्यते ॥१२६०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1260
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 5
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 5
Acknowledgment
पदार्थ -
(एषः-हरिः-पवमानः-देवः) यह दुःखापहर्ता सुखाहर्ता धारारूप में प्राप्त होता हुआ द्योतमान परमात्मा (विपन्युभिः-ऋतायुभिः) स्तुतिकर्ता मेधावी६ सत्यकामी उपासकों के द्वारा (वाजाय मृज्यते) अमृत अन्न-भोग के लिये प्राप्त किया जाता है७॥५॥
विशेष - <br>
इस भाष्य को एडिट करें