Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1332
ऋषिः - अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वराः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - द्विपदा विराट् पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
5
प꣡व꣢स्व सोम म꣣हे꣢꣫ दक्षा꣣या꣢श्वो꣣ न꣢ नि꣣क्तो꣢ वा꣣जी꣡ धना꣢꣯य ॥१३३२॥
स्वर सहित पद पाठप꣡व꣢꣯स्व । सो꣣म । महे꣢ । द꣡क्षा꣢꣯य । अ꣡श्वः꣢꣯ । न । नि꣣क्तः꣢ । वा꣣जी꣢ । ध꣡ना꣢꣯य ॥१३३२॥
स्वर रहित मन्त्र
पवस्व सोम महे दक्षायाश्वो न निक्तो वाजी धनाय ॥१३३२॥
स्वर रहित पद पाठ
पवस्व । सोम । महे । दक्षाय । अश्वः । न । निक्तः । वाजी । धनाय ॥१३३२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1332
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 11; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 11; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
Acknowledgment
टिप्पणी -
(देखो अर्थव्याख्या मन्त्र संख्या ४३०)
विशेष - ऋषिः—ऋणत्रसदस्यू ऋषी (ऋण-त्रास को क्षीणकर्ता जपपरायण स्वाध्यायशील)॥ देवता—पवमानः सोमः (धारारूप में प्राप्त होने वाला शान्तस्वरूप परमात्मा)॥ छन्दः—द्विपदा विराट्॥<br>
इस भाष्य को एडिट करें