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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1336
ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
त꣡मिद्व꣢꣯र्धन्तु नो꣣ गि꣡रो꣢ व꣣त्स꣢ꣳ स꣣ꣳशि꣡श्व꣢रीरिव । य꣡ इन्द्र꣢꣯स्य हृद꣣ꣳस꣡निः꣢ ॥१३३६॥
स्वर सहित पद पाठत꣢म् । इत् । व꣢र्धन्तु । नः । गि꣡रः꣢꣯ । व꣣त्स꣢म् । स꣣ꣳशि꣡श्व꣢रीः । स꣣म् । शि꣡श्व꣢꣯रीः । इ꣣व । यः꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯स्य । हृ꣣दꣳस꣡निः꣢ ॥१३३६॥
स्वर रहित मन्त्र
तमिद्वर्धन्तु नो गिरो वत्सꣳ सꣳशिश्वरीरिव । य इन्द्रस्य हृदꣳसनिः ॥१३३६॥
स्वर रहित पद पाठ
तम् । इत् । वर्धन्तु । नः । गिरः । वत्सम् । सꣳशिश्वरीः । सम् । शिश्वरीः । इव । यः । इन्द्रस्य । हृदꣳसनिः ॥१३३६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1336
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 20; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 11; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 20; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 11; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(तम्-इत्) उस सोम—परमात्मा को ही (नः-गिरः संवर्धन्तु) हमारी स्तुतियाँ बढ़ावा दें—हमारी ओर आने को उत्साहित करें३ (वत्सं शिश्वरीः-इव) जैसे शिशु वाली४ माताएँ दूध पिलाने वाली अपनी ओर आने के लिये बच्चे को उत्साहित करती हैं (यः-इन्द्रस्य हृदं सनिः) जो उपासक आत्मा के हृदय का सम्भक्ता—हृदय में रहने वाला या हृदयग्राही हो॥२॥
विशेष - <br>
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