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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1355
ऋषिः - प्रगाथः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
प꣣दा꣢ प꣣णी꣡न꣢रा꣣ध꣢सो꣣ नि꣡ बा꣢धस्व म꣣हा꣡ꣳ अ꣢सि । न꣢꣫ हि त्वा꣣ क꣢श्च꣣ न꣡ प्रति꣢꣯ ॥१३५५॥
स्वर सहित पद पाठपदा꣢ । प꣣णी꣢न् । अ꣣राध꣡सः꣢ । अ꣣ । राध꣡सः꣢ । नि । बा꣣धस्व । महा꣢न् । अ꣣सि । न꣢ । हि । त्वा꣣ । कः꣢ । च꣣ । न꣢ । प्र꣡ति꣢꣯ ॥१३५५॥
स्वर रहित मन्त्र
पदा पणीनराधसो नि बाधस्व महाꣳ असि । न हि त्वा कश्च न प्रति ॥१३५५॥
स्वर रहित पद पाठ
पदा । पणीन् । अराधसः । अ । राधसः । नि । बाधस्व । महान् । असि । न । हि । त्वा । कः । च । न । प्रति ॥१३५५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1355
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(अराधसः पणीन्) राधनारहित—उपासनारहित स्तुतिकर्ताओं—ऊपर से उपासना प्रदर्शनकर्ताओं को (पदा निबाधस्व) पैर से ठुकराते हैं ऐसे ठुकरा दे—ठुकराता है (महान्-असि) तू महान् है (त्वा प्रति) तेरा प्रतिपक्षी—प्रतिरोधी या तेरा प्रतिमान—तेरे समान उपास्यदेव (न हि कश्चन) कोई भी नहीं है॥२॥
विशेष - <br>
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