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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1358
ऋषिः - पराशरः शाक्त्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम -
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स꣡ पु꣢ना꣣न꣢꣫ उप꣣ सू꣢रे꣣ द꣡धा꣢न꣣ ओ꣡भे अ꣢꣯प्रा꣣ रो꣡द꣢सी꣣ वी꣡ ष आ꣢꣯वः । प्रि꣣या꣢ चि꣣द्य꣡स्य꣢ प्रिय꣣सा꣡स꣢ ऊ꣣ती꣢ स꣣तो꣡ धनं꣢꣯ का꣣रि꣢णे꣣ न꣡ प्र य꣢꣯ꣳसत् ॥१३५८॥

स्वर सहित पद पाठ

सः । पु꣣नानः꣢ । उ꣡प꣢꣯ । सू꣡रे꣢꣯ । द꣡धा꣢꣯नः । आ । उ꣣भे꣡इति꣢ । अ꣣प्राः । रो꣡दसी꣣इ꣡ति꣢ । वि । सः । आ꣣वरि꣡ति꣢ । प्रि꣣या꣢ । चि꣣त् । य꣡स्य꣢꣯ । प्रि꣣यसा꣡सः꣢ । ऊ꣣ती꣢ । स꣣तः꣢ । ध꣡न꣢꣯म् । का꣣रि꣡णे꣢ । न । प्र । य꣣ꣳसत् ॥१३५८॥


स्वर रहित मन्त्र

स पुनान उप सूरे दधान ओभे अप्रा रोदसी वी ष आवः । प्रिया चिद्यस्य प्रियसास ऊती सतो धनं कारिणे न प्र यꣳसत् ॥१३५८॥


स्वर रहित पद पाठ

सः । पुनानः । उप । सूरे । दधानः । आ । उभेइति । अप्राः । रोदसीइति । वि । सः । आवरिति । प्रिया । चित् । यस्य । प्रियसासः । ऊती । सतः । धनम् । कारिणे । न । प्र । यꣳसत् ॥१३५८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1358
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(सः) वह सोम—शान्तस्वरूप परमात्मा (पुनानः) व्यापता हुआ—विभुगति करता हुआ२ (सूरे-उपदधानः) संसार में जन्म पाने वाले आत्मा के निमित्त३ कृपा करता हुआ (उभे रोदसी-आ-अप्राः) दोनों द्युलोक और पृथिवीलोक को अपनी व्यापन गति शक्ति से भरता है और (सः) वह (वि-आवः) उन्हें खोल देता है—उन्हें प्रकट करता है—उत्पन्न करता है (यस्य सतः प्रिया चित्) जिस नित्य प्रिय उपासक आत्मा के लिये४ (प्रियासः) परमात्मा के प्रिय आनन्दधाराप्रवाह (ऊती) रक्षा के लिये है, उन्हें (प्रयंसत्-धनं कारिणे न) प्रदान करता है कर्मचारी के लिये जैसे धन प्रदान करता है॥२॥

विशेष - <br>

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