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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1452
ऋषिः - सुकक्ष आङ्गिरसः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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स꣢ न꣣ इ꣡न्द्रः꣢ शि꣣वः꣡ सखाश्वा꣢꣯व꣣द्गो꣢म꣣द्य꣡व꣢मत् । उ꣣रु꣡धा꣢रेव दोहते ॥१४५२॥

स्वर सहित पद पाठ

सः꣢ । नः꣣ । इन्द्रः । शि꣡वः꣢꣯ । स꣡खा꣢꣯ । स । खा꣣ । अ꣡श्वा꣢꣯वत् । गो꣡म꣢꣯त् । य꣡व꣢꣯मत् । उ꣣रु꣡धा꣢रा । उ꣣रु꣢ । धा꣣रा । इव । दोहते ॥१४५२॥


स्वर रहित मन्त्र

स न इन्द्रः शिवः सखाश्वावद्गोमद्यवमत् । उरुधारेव दोहते ॥१४५२॥


स्वर रहित पद पाठ

सः । नः । इन्द्रः । शिवः । सखा । स । खा । अश्वावत् । गोमत् । यवमत् । उरुधारा । उरु । धारा । इव । दोहते ॥१४५२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1452
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(बाह्वोजसा) जो इन्द्र—ऐश्वर्यवान् परमात्मा अनिष्टबाधक बल से उपासक को (नव नवतिं ‘नवतीः’ पुरः) नौ गतियों२ मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार और पाँच ज्ञानेन्द्रियों की प्रवृत्तियाँ—जो आत्मा को पूरने वाली—घेरने वाली हैं उन्हें (बिभेद) छिन्न-भिन्न कर देता है (वृत्रहा) पापनाशक परमात्मा (अहिं च-अवधीत्) आत्मा के अमरत्व को आघात पहुँचाने वाले मृत्यु को या आगे आने वाले जन्म को नष्ट कर देता है (सः-इन्द्रः) वह ऐश्वर्यवान् परमात्मा पुनः (नः) हमारा (शिवः) कल्याणकारी (सखा) मित्र—साथी हुआ (अश्वावत्) घोड़ों वाले विहरण को (गोमत्) गौ वाले पेय (यवमत्) अन्न वाले भक्ष्य भोगों को यदि हम चाहें तो (उरुधारा-इव दोहते) बहुत दुग्ध धारा वाली गौ को दोहता है—देता है॥२-३॥

विशेष - <br>

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