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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1470
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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के꣣तुं꣢ कृ꣣ण्व꣡न्न꣢के꣣त꣢वे꣣ पे꣡शो꣢ मर्या अपे꣣श꣡से꣢ । स꣢मु꣣ष꣡द्भि꣢रजायथाः ॥१४७०॥

स्वर सहित पद पाठ

के꣣तु꣢म् । कृ꣣ण्व꣢न् । अ꣣केत꣡वे꣢ । अ꣣ । केत꣡वे꣢ । पे꣡शः꣢꣯ । म꣣र्याः । अपेश꣡से꣢ । अ꣣ । पेश꣡से꣣ । सम् । उ꣣ष꣡द्भिः꣢ । अ꣣जायथाः ॥१४७०॥


स्वर रहित मन्त्र

केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे । समुषद्भिरजायथाः ॥१४७०॥


स्वर रहित पद पाठ

केतुम् । कृण्वन् । अकेतवे । अ । केतवे । पेशः । मर्याः । अपेशसे । अ । पेशसे । सम् । उषद्भिः । अजायथाः ॥१४७०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1470
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 4; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(मर्याः) हे उपासक जनो!६ वह इन्द्र—परमात्मा (अकेतवे केतुं कृण्वन्) प्रज्ञानरहित को प्रज्ञानवान् बनाने के हेतु अपना स्वरूप ज्ञान देने के हेतु (अपेशसे पेशः) स्वदर्शनरहित को स्वदर्शन देने के हेतु (उषद्भिः समजायथाः) अज्ञान एवं जड़ता के दग्ध करने वाले ज्ञानानन्द रसमय धर्मों गुणों के साथ उपासकों के अन्दर उनकी स्तुति उपासना से दयावान् होकर साक्षात् होता है॥३॥

विशेष - <br>

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