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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 150
ऋषिः - श्रुतकक्षः सुकक्षो वा देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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उ꣡प꣢ नो꣣ ह꣡रि꣢भिः सु꣣तं꣢ या꣣हि꣡ म꣢दानां पते । उ꣡प꣢ नो꣣ ह꣡रि꣢भिः सु꣣त꣢म् ॥१५०॥

स्वर सहित पद पाठ

उ꣡प꣢꣯ । नः꣣ । ह꣡रि꣢꣯भिः । सु꣣त꣢म् । या꣣हि꣢ । म꣣दानाम् । पते । उ꣡प꣢꣯ । नः꣣ । ह꣡रि꣢꣯भिः । सु꣣त꣢म् ॥१५०॥


स्वर रहित मन्त्र

उप नो हरिभिः सुतं याहि मदानां पते । उप नो हरिभिः सुतम् ॥१५०॥


स्वर रहित पद पाठ

उप । नः । हरिभिः । सुतम् । याहि । मदानाम् । पते । उप । नः । हरिभिः । सुतम् ॥१५०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 150
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 4;
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पदार्थ -
(मदानां पते) हे समस्त हर्षों और आनन्दों के स्वामिन्! तू (नः सुतम्) हमारे निष्पादित हावभावपूर्ण उपासनारस एवं भक्तिभाव को (हरिभिः-उप-याहि) दुःखापहरण करने वाले एवं सुखाहरण करने वाले गुणों से प्राप्त हो (नः सुतं हरिभिः-उप) हमारे निष्पादित भक्तिभाव को दुःखापहरण करने वाले सुखाहरण करने वाले गुणों से प्राप्त हो।

भावार्थ - हर्ष सुखों के स्वामिन् परमात्मन्! तू हमारे द्वारा निष्पादित उपासनारस को दुःखापहरण करने वाले सुखाहरण करने वाले गुणों से हमें प्राप्त होता है अतः हम प्रार्थना करते हैं कि आप हमारे उपासना रस को हमारे कल्याणार्थ सेवन कीजिए॥६॥

विशेष - ऋषिः—श्रुतकक्षः सुकक्षो वा (अध्यात्मकक्ष जिसने सुन लिया या शोभन अध्यात्मकक्ष जिसका चल रहा है ऐसा जन)॥<br>

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