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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1524
ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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अ꣡वा꣢ नो अग्न ऊ꣣ति꣡भि꣢र्गाय꣣त्र꣢स्य꣣ प्र꣡भ꣢र्मणि । वि꣡श्वा꣢सु धी꣣षु꣡ व꣢न्द्य ॥१५२४॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡व꣢꣯ । नः꣣ । अग्ने । ऊति꣡भिः꣢ । गा꣣यत्र꣡स्य꣢ । प्र꣡भ꣢꣯र्मणि । प्र । भ꣣र्मणि । वि꣡श्वा꣢꣯सु । धी꣣षु꣢ । व꣣न्द्य ॥१५२४॥


स्वर रहित मन्त्र

अवा नो अग्न ऊतिभिर्गायत्रस्य प्रभर्मणि । विश्वासु धीषु वन्द्य ॥१५२४॥


स्वर रहित पद पाठ

अव । नः । अग्ने । ऊतिभिः । गायत्रस्य । प्रभर्मणि । प्र । भर्मणि । विश्वासु । धीषु । वन्द्य ॥१५२४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1524
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(विश्वासु धीषु वन्द्य) समस्त प्रज्ञानों में अध्यात्मध्यानों में वन्दनीय देव (अग्ने) हे अग्रणायक परमात्मन्! तू (गायत्रस्य प्रभर्मणि) स्तुतिकर्म के३ प्रकृष्ट भरण, समर्पण या अनुष्ठान में (ऊतिभिः-नः-अव) रक्षाविधियों से हमारी रक्षा कर॥१॥

विशेष - ऋषिः—गोतमः (परमात्मा में अत्यन्त गति प्रवृत्ति वाला)॥ देवता—अग्निः (ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मा)॥<br>

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