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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1534
ऋषिः - विरूप आङ्गिरसः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
उ꣡द꣢ग्ने꣣ शु꣡च꣢य꣣स्त꣡व꣢ शु꣣क्रा꣡ भ्राज꣢꣯न्त ईरते । त꣢व꣣ ज्यो꣡ती꣢ꣳष्य꣣र्च꣡यः꣢ ॥१५३४॥
स्वर सहित पद पाठउत् । अ꣣ग्ने । शु꣡च꣢꣯यः । त꣡व꣢꣯ । शु꣣क्राः꣢ । भ्रा꣡ज꣢꣯न्तः । ई꣣रते । त꣡व꣢꣯ । ज्यो꣡ती꣢꣯ꣳषि । अ꣣र्च꣡यः꣢ ॥१५३४॥
स्वर रहित मन्त्र
उदग्ने शुचयस्तव शुक्रा भ्राजन्त ईरते । तव ज्योतीꣳष्यर्चयः ॥१५३४॥
स्वर रहित पद पाठ
उत् । अग्ने । शुचयः । तव । शुक्राः । भ्राजन्तः । ईरते । तव । ज्योतीꣳषि । अर्चयः ॥१५३४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1534
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(उद्) (अग्ने) हे ज्ञानप्रकाशक परमात्मन्! (तव शुचयः शुक्राः भ्राजन्ते) तेरे वीर्यबल२ शुभ्र प्रदीप्त चमचमाते हुए गुणबल सम्मुख प्राप्त हो रहे हैं (तव ज्योतींषि-अर्चयः) और तेरी ज्ञानज्योतियाँ तथा आनन्द तरङ्गें भी हमें प्राप्त हो रही हैं॥३॥
विशेष - <br>
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