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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1557
ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
अ꣣भि꣡ प्रया꣢꣯ꣳसि꣣ वा꣡ह꣢सा दा꣣श्वा꣡ꣳ अ꣢श्नोति꣣ म꣡र्त्यः꣢ । क्ष꣡यं꣢ पाव꣣क꣡शो꣢चिषः ॥१५५७॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣भि꣢ । प्र꣡या꣢꣯ꣳसि । वा꣡ह꣢꣯सा । दा꣣श्वा꣢न् । अ꣣श्नोति । म꣡र्त्यः꣢꣯ । क्ष꣡य꣢꣯म् । पा꣣वक꣡शो꣢चिषः । पा꣣वक꣢ । शो꣣चिषः ॥१५५७॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि प्रयाꣳसि वाहसा दाश्वाꣳ अश्नोति मर्त्यः । क्षयं पावकशोचिषः ॥१५५७॥
स्वर रहित पद पाठ
अभि । प्रयाꣳसि । वाहसा । दाश्वान् । अश्नोति । मर्त्यः । क्षयम् । पावकशोचिषः । पावक । शोचिषः ॥१५५७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1557
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(दाश्वान्-मर्त्यः) आत्मदानी—आत्मसमर्पी उपासक (वाहसा) स्तुतिप्रापण—स्तुतिप्रवाह से४ (प्रयांसि) अत्यन्त प्रिय भोगों को (अभि-अश्नोति) भोगता है५ या प्राप्त करता है६ (पावक शोचिषः-क्षयम्) पवित्रकारक ज्ञानदीप्तिमान् परमात्मा अमृत निवास को—उसके अमृतभोग को भी भोगता है या प्राप्त करता है॥२॥
विशेष - <br>
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