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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1585
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः
देवता - वरुणः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
9
इ꣣मं꣡ मे꣢ वरुण श्रुधी꣣ ह꣡व꣢म꣣द्या꣡ च꣢ मृडय । त्वा꣡म꣢व꣣स्यु꣡रा च꣢꣯के ॥१५८५॥
स्वर सहित पद पाठइ꣣म꣢म् । मे꣣ । वरुण । श्रुधि । ह꣡व꣢꣯म् । अ꣣द्य꣢ । अ꣣ । द्य꣢ । च꣣ । मृडय । त्वा꣢म् । अ꣣वस्युः꣢ । आ । च꣣के ॥१५८५॥
स्वर रहित मन्त्र
इमं मे वरुण श्रुधी हवमद्या च मृडय । त्वामवस्युरा चके ॥१५८५॥
स्वर रहित पद पाठ
इमम् । मे । वरुण । श्रुधि । हवम् । अद्य । अ । द्य । च । मृडय । त्वाम् । अवस्युः । आ । चके ॥१५८५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1585
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(वरुण) हे वरने योग्य परमात्मन्! (मे) मेरे (इमं हवम्) इस आमन्त्रण या प्रार्थना को (श्रुधि) सुन—स्वीकार कर (च) और (अद्य मृडय) आज—तुरन्त इसी जीवन में मुझे सुखी कर (अवस्युः) रक्षा चाहनेवाला मैं (त्वाम्-आचके) तुझे चाहता हूँ१ तेरी प्राप्ति एवं दर्शन की कामना करता हूँ॥१॥
विशेष - ऋषिः—आजीगर्तः शुनःशेपः (इन्द्रियभोगों की दौड़ में शरीरगर्त में गिरा उत्थान का इच्छुक)॥ देवता—वरुणः (वरनेयोग्य तथा वरनेवाला परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>
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