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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 159
ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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अ꣣यं꣡ त꣢ इन्द्र꣣ सो꣢मो꣣ नि꣡पू꣢तो꣣ अ꣡धि꣢ ब꣣र्हि꣡षि꣢ । ए꣡ही꣢म꣣स्य꣢꣫ द्रवा꣣ पि꣡ब꣢ ॥१५९॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣य꣢म् । ते꣣ । इन्द्र । सो꣡मः꣢꣯ । नि꣡पू꣢꣯तः । नि । पू꣣तः । अ꣡धि꣢꣯ । ब꣣र्हि꣡षि꣢ । आ । इ꣣हि । ईम् । अस्य꣢ । द्र꣡व꣢꣯ । पि꣡ब꣢꣯ ॥१५९॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं त इन्द्र सोमो निपूतो अधि बर्हिषि । एहीमस्य द्रवा पिब ॥१५९॥
स्वर रहित पद पाठ
अयम् । ते । इन्द्र । सोमः । निपूतः । नि । पूतः । अधि । बर्हिषि । आ । इहि । ईम् । अस्य । द्रव । पिब ॥१५९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 159
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5;
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पदार्थ -
(इन्द्र) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! (ते) तेरे लिये (बर्हिषि-अधि) निज हृदयावकाश में (अयं सोमः-निपूतः) यह उपासनारस निष्पन्न किया है (ईम्-एहि) इसके पास आ (अस्य द्रव पिब) इसके प्रति शीघ्र गति कर और इसे पान कर।
भावार्थ - हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! मैंने अपने हृदयावकाश में तेरे लिये उपासनारस को श्रद्धा से निष्पादित किया है तू मेरे हृदय में आ शीघ्र आकर इसका पान कर—स्वीकार कर॥५॥
विशेष - ऋषिः—इरिम्बिठः (अन्तरिक्ष में—हृदयाकाश में गतिवाला उपासक)॥<br>
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