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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1633
ऋषिः - रेभसूनू काश्यपौ देवता - पवमानः सोमः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
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तं꣡ गाथ꣢꣯या पुरा꣣ण्या꣡ पु꣢ना꣣न꣢म꣣꣬भ्य꣢꣯नूषत । उ꣣तो꣡ कृ꣢पन्त धी꣣त꣡यो꣢ दे꣣वा꣢नां꣣ ना꣢म꣣ बि꣡भ्र꣢तीः ॥१६३३॥

स्वर सहित पद पाठ

तम् । गा꣡थ꣢꣯या । पु꣡राण्या꣢ । पु꣣नान꣢म् । अ꣣भि꣢ । अ꣣नूषत । उत꣢ । उ꣣ । कृपन्त । धीत꣡यः꣢ । दे꣣वा꣡ना꣢म् । ना꣡म꣢꣯ । बि꣡भ्र꣢꣯तीः ॥१६३३॥


स्वर रहित मन्त्र

तं गाथया पुराण्या पुनानमभ्यनूषत । उतो कृपन्त धीतयो देवानां नाम बिभ्रतीः ॥१६३३॥


स्वर रहित पद पाठ

तम् । गाथया । पुराण्या । पुनानम् । अभि । अनूषत । उत । उ । कृपन्त । धीतयः । देवानाम् । नाम । बिभ्रतीः ॥१६३३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1633
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 17; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(तं पुनानम्) उस पवित्रकारक परमात्मा को (पुराण्या गाथया) सनातनी वेदवाणी१० के द्वारा (अभ्यनूषत) उपासकजनो! आन्तरिकभाव से स्तुत करो—स्तुति में लाओ११ (देवानाम्-उत-उ) और मुमुक्षुओं के भी (नाम बिभ्रतीः) नम्रभाव को धारण करने के हेतु (धीतयः) प्रज्ञाएँ१२ (कृपन्त) समर्थ होती हैं—सफल करती हैं॥३॥

विशेष - <br>

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