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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1677
ऋषिः - वालखिल्यम् (आयुः काण्वः)
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती)
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम -
6
अ꣡स्ता꣢वि꣣ म꣡न्म꣢ पू꣣र्व्यं꣡ ब्रह्मेन्द्रा꣢꣯य वोचत । पू꣣र्वी꣢रृ꣣त꣡स्य꣢ बृह꣣ती꣡र꣢नूषत स्तो꣣तु꣢र्मे꣣धा꣡ अ꣢सृक्षत ॥१६७७॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡स्ता꣢꣯वि । म꣡न्म꣢꣯ । पू꣣र्व्य꣢म् । ब्र꣡ह्म꣢꣯ । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । वो꣣चत । पूर्वीः꣢ । ऋ꣣त꣡स्य꣢ । बृ꣣हतीः꣢ । अ꣣नूषत । स्तोतुः꣢ । मे꣣धाः꣢ । अ꣣सृक्षत ॥१६७७॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्तावि मन्म पूर्व्यं ब्रह्मेन्द्राय वोचत । पूर्वीरृतस्य बृहतीरनूषत स्तोतुर्मेधा असृक्षत ॥१६७७॥
स्वर रहित पद पाठ
अस्तावि । मन्म । पूर्व्यम् । ब्रह्म । इन्द्राय । वोचत । पूर्वीः । ऋतस्य । बृहतीः । अनूषत । स्तोतुः । मेधाः । असृक्षत ॥१६७७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1677
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(अस्तावि) ऐश्वर्यवान् परमात्मा स्तुत किया जाता है, अतः (इन्द्राय) उस ऐश्वर्यवान् परमात्मा के लिये (पूर्व्यं मन्म ब्रह्म वोचत) शाश्वत मननयोग्य मन्त्र१ को बोलो (ऋतस्य पूर्वीः-बृहतीः-अनूषत) ब्रह्मयज्ञ की पूर्ववर्ती स्तुतिवाणियों को२ स्तुति में लाओ (स्तोतुः-मेधाः-असृक्षत) स्तुतिकर्ता की बुद्धियाँ इस ब्रह्मयज्ञ में प्रवृत्त हों॥१॥
विशेष - ऋषिः—काण्वः आयुः (कण्व मेधावी से सम्बद्ध परमात्मा में गमनशील उपासकजन)॥ देवता—इन्द्रः (ऐश्वर्यवान् परमात्मा)॥ छन्दः—विषमा बृहती॥<br>
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