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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1808
ऋषिः - नीपातिथिः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
6
अ꣢त्रा꣣ वि꣢ ने꣣मि꣡रे꣢षा꣣मु꣢रां꣣ न꣡ धू꣢नुते꣣ वृ꣡कः꣢ । दि꣣वो꣢ अ꣣मु꣢ष्य꣣ शा꣡स꣢तो꣣ दि꣡वं꣢ य꣣य꣡ दि꣢वावसो ॥१८०८॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡त्र꣢꣯ । वि । ने꣣मिः꣢ । ए꣣षाम् । उ꣡रा꣢꣯म् । न । धू꣡नुते । वृ꣡कः꣢꣯ । दि꣡वः꣢꣯ । अ꣣मु꣡ष्य꣢ । शा꣡स꣢꣯तः । दि꣡व꣢꣯म् । य꣣य꣢ । दि꣣वावसो । दिवा । वसो ॥१८०८॥
स्वर रहित मन्त्र
अत्रा वि नेमिरेषामुरां न धूनुते वृकः । दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो ॥१८०८॥
स्वर रहित पद पाठ
अत्र । वि । नेमिः । एषाम् । उराम् । न । धूनुते । वृकः । दिवः । अमुष्य । शासतः । दिवम् । यय । दिवावसो । दिवा । वसो ॥१८०८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1808
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(अत्र) इस अध्यात्मयज्ञ में (एषां नेमिः) परमात्मन्! इन हरियों अज्ञान पाप हरने वाली शक्तितरङ्गों की नयनप्रवृत्ति५ गतिविधि (उरां न) ऊन के लिये भेड़ को जैसे (वृकः-धूनुते) भेड़िया विकम्पित कर देता है—निःसत्त्व बना देता है ऐसे पापवासना६ को विकम्पित कर देता है—निःसत्त्व बना देता है७ (दिवावसो) हे प्रकाश धन वाले या प्रकाश में वसाने वाले परमात्मन्! (अमुष्य दिवः शासतः) उस प्रकाशमय अमृतलोक मोक्षधाम के शासन करते हुए के अपने (दिवं यय) प्रकाशमय अमृतधाम को मुझ उपासक को ले-जा॥२॥
विशेष - <br>
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