Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 194
ऋषिः - प्रगाथः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
5

उ꣡त्त्वा꣢ मन्दन्तु꣣ सो꣡माः꣢ कृणु꣣ष्व꣡ राधो꣢꣯ अद्रिवः । अ꣡व꣢ ब्रह्म꣣द्वि꣡षो꣢ जहि ॥१९४॥

स्वर सहित पद पाठ

उ꣢त् । त्वा꣣ । मन्दन्तु । सो꣡माः꣢꣯ । कृ꣣णुष्व꣢ । रा꣡धः꣢꣯ । अ꣣द्रिवः । अ । द्रिवः । अ꣡व꣢꣯ । ब्र꣣ह्मद्वि꣡षः꣢ । ब्र꣣ह्म । द्वि꣡षः꣢꣯ । ज꣣हिः ॥१९४॥


स्वर रहित मन्त्र

उत्त्वा मन्दन्तु सोमाः कृणुष्व राधो अद्रिवः । अव ब्रह्मद्विषो जहि ॥१९४॥


स्वर रहित पद पाठ

उत् । त्वा । मन्दन्तु । सोमाः । कृणुष्व । राधः । अद्रिवः । अ । द्रिवः । अव । ब्रह्मद्विषः । ब्रह्म । द्विषः । जहिः ॥१९४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 194
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 9;
Acknowledgment

पदार्थ -
(अद्रिवः) हे अद्रिवन्-आनन्दघनवन्—आनन्द बरसाने वाले परमात्मन्! (त्वा) तुझे (सोमाः) हमारे द्वारा निष्पादित—विविध उपासनारस (उत्-मदन्तु) हमारी ओर उद्धर्षित करें—उल्लसित करें, इस प्रकार कि तू (राधः कृणुष्व) समृद्ध करने वाले धन को प्रदान कर (ब्रह्मद्विषः-अवजहि) तुझ ब्रह्म से द्वेष करने वाले तुझसे विमुख करने वाले नास्तिक विचार या मुझे ब्रह्म—ब्राह्मणत्व पद पाने के विरोधी नास्तिकपने को दबा दें।

भावार्थ - हे आनन्द घन वाले परमात्मन्! मेरे विविध उपासनारस तुझे मेरी ओर उल्लसित करें उल्लास पूर्ण करें, जिससे तू समृद्ध करने वाले ऐश्वर्य मोक्षैश्वर्य को प्रदान करे तथा तेरी ओर आने में बाधक को मुझे ब्राह्मण बनने में विरोधी नास्तिक विचार को हटा दें॥१॥

विशेष - ऋषिः—प्रगाथः (प्रकृष्ट गाथा—वाणी—स्तुति जिसकी है ऐसा उपासक)॥<br>

इस भाष्य को एडिट करें
Top