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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 237
ऋषिः - कलिः प्रागाथः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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त꣡रो꣣भिर्वो वि꣣द꣡द्व꣢सु꣣मि꣡न्द्र꣢ꣳ स꣣बा꣡ध꣢ ऊ꣣त꣡ये꣢ । बृ꣣ह꣡द्गाय꣢꣯न्तः सु꣣त꣡सो꣢मे अध्व꣣रे꣢ हु꣣वे꣢꣫ भरं꣣ न꣢ का꣣रि꣡ण꣢म् ॥२३७॥
स्वर सहित पद पाठत꣡रो꣢꣯भिः । वः꣣ । विद꣡द्व꣢सुम् । वि꣣द꣢त् । व꣣सुम् । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । स꣣बा꣡धः꣢ । स꣣ । बा꣡धः꣢꣯ । ऊ꣣त꣡ये꣢ । बृ꣣ह꣢त् । गा꣡य꣢꣯न्तः । सु꣣त꣡सो꣢मे । सु꣣त꣢ । सो꣣मे । अध्वरे꣢ । हु꣣वे꣢ । भ꣡र꣢म् । न । का꣣रि꣡ण꣢म् ॥२३७॥
स्वर रहित मन्त्र
तरोभिर्वो विदद्वसुमिन्द्रꣳ सबाध ऊतये । बृहद्गायन्तः सुतसोमे अध्वरे हुवे भरं न कारिणम् ॥२३७॥
स्वर रहित पद पाठ
तरोभिः । वः । विदद्वसुम् । विदत् । वसुम् । इन्द्रम् । सबाधः । स । बाधः । ऊतये । बृहत् । गायन्तः । सुतसोमे । सुत । सोमे । अध्वरे । हुवे । भरम् । न । कारिणम् ॥२३७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 237
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 1;
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पदार्थ -
(वः) तुम और हम (सबाधः) ‘बाधते या सा बाधा क्विबन्तः प्रयोग, तथा सह-सबाधः-बहुवचने’ जब बाधने वाली वासना से पीड़ित हुए हो तो (ऊतये) अपनी रक्षा के लिये (तरोभिः) समस्त बलों से युक्त “तरः-बलनाम” [निघं॰ २.९] (विदद्वसुम्) प्राप्तामृत धन वाले (भरं न कारिणम्) भरण पोषण करने वाले उपकारी—उपकारकर्ता—परोपकारी की भाँति उस परमात्मा को (सुतसोमे-अध्वरे) निष्पादित उपासनारस वाले अध्यात्म यज्ञ के अवसर पर (बृहद्गायन्तः-हुवे) बहुत गान—हार्दिक भावना से गुणगान करते हुए अपने अन्दर आमन्त्रित करें ‘हुवे-हुवेम’ “वचनव्यत्ययः”।
भावार्थ - उपासक जब कभी वासना से बाधित हो तो अपनी रक्षा के लिये समस्त बलों से युक्त अमृत धन के स्वामी भरण पोषणकर्ता उपकारकारी जन की भाँति परमात्मा को निष्पादित उपासनारस वाले अध्यात्म यज्ञ के अवसर पर अपने अन्दर आमन्त्रित करें॥५॥
विशेष - ऋषिः—कलिः प्रगाथः (वक्ता प्रकृष्ट वाणी वाला)॥<br>
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