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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 259
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः देवता - इन्द्रः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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इ꣢न्द्र꣣ क्र꣡तुं꣢ न꣣ आ꣡ भ꣢र पि꣣ता꣢ पु꣣त्रे꣢भ्यो꣣ य꣡था꣢ । शि꣡क्षा꣢ णो अ꣣स्मि꣡न्पु꣢रुहूत꣣ या꣡म꣢नि जी꣣वा꣡ ज्योति꣢꣯रशीमहि ॥२५९॥

स्वर सहित पद पाठ

इ꣢न्द्र꣢꣯ । क्र꣡तु꣢꣯म् । नः꣣ । आ꣢ । भ꣣र । पिता꣢ । पु꣣त्रे꣡भ्यः꣢ । पु꣣त् । त्रे꣡भ्यः꣢꣯ । य꣡था꣢꣯ । शि꣡क्ष꣢꣯ । नः꣣ । अस्मि꣢न् । पु꣣रुहूत । पुरु । हूत । या꣡म꣢꣯नि । जी꣣वाः꣢ । ज्यो꣡तिः꣢꣯ । अ꣣शीमहि ॥२५९॥


स्वर रहित मन्त्र

इन्द्र क्रतुं न आ भर पिता पुत्रेभ्यो यथा । शिक्षा णो अस्मिन्पुरुहूत यामनि जीवा ज्योतिरशीमहि ॥२५९॥


स्वर रहित पद पाठ

इन्द्र । क्रतुम् । नः । आ । भर । पिता । पुत्रेभ्यः । पुत् । त्रेभ्यः । यथा । शिक्ष । नः । अस्मिन् । पुरुहूत । पुरु । हूत । यामनि । जीवाः । ज्योतिः । अशीमहि ॥२५९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 259
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 7
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 3;
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पदार्थ -
(पुरुहूत) बहुत प्रकार से आमन्त्रित करने योग्य (इन्द्र) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! (पुत्रेभ्यः-यथा पिता) पुत्रों के लिये पिता की भाँति (नः क्रतुम्-आभर) हमारे लिये प्रज्ञान ऊँचा ज्ञान सौंप दे (नः-शिक्ष) हमें सर्वस्व गुण सम्पत्ति दे “शिक्षति दानकर्मा” [निघं॰ ३.२०] (अस्मिन्-यामनि इस संसारयात्रा में (जीवाः-ज्योतिः-अशीमहि) हम जीते हुए तेरी ज्योति को प्राप्त कर सकें।

भावार्थ - परमात्मन्! तू हमारा पिता है हम तेरे पुत्र हैं, पुत्रों के अन्दर जैसा पिता अपने प्रज्ञान को भरता है और सर्वस्व का प्रदान करता है तू भी प्रज्ञान भर दे तथा गुणसम्पत्ति का भी प्रदान कर दे अतः इस संसारयात्रा में मार्ग निर्देश कर कि हम कैसे संसार के भिन्न भिन्न मार्गों में चलें, यहाँ जीवन की सफलता प्राप्त करें, पुनः जीते हुए तेरी अनुपम ज्योति को पा सकें॥७॥

विशेष - ऋषिः—वसिष्ठः (परमात्मा में अत्यन्त वसने वाला उपासक)॥<br>

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