Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 381
ऋषिः - नारदः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - उष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
7
इ꣡न्द्र꣢ सु꣣ते꣢षु꣣ सो꣡मे꣢षु꣣ क्र꣡तुं꣢ पुनीष उ꣣꣬क्थ्य꣢꣯म् । वि꣣दे꣢ वृ꣣ध꣢स्य꣣ द꣡क्ष꣢स्य म꣣हा꣢ꣳ हि षः ॥३८१॥
स्वर सहित पद पाठइ꣡न्द्र꣢꣯ । सु꣣ते꣡षु꣢ । सो꣡मे꣢꣯षु । क्र꣡तु꣢꣯म् । पु꣣नीषे । उक्थ्य꣢꣯म् । वि꣣दे꣢ । वृ꣣ध꣡स्य꣢ । द꣡क्ष꣢꣯स्य । म꣣हा꣢न् । हि । सः ॥३८१॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्र सुतेषु सोमेषु क्रतुं पुनीष उक्थ्यम् । विदे वृधस्य दक्षस्य महाꣳ हि षः ॥३८१॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्र । सुतेषु । सोमेषु । क्रतुम् । पुनीषे । उक्थ्यम् । विदे । वृधस्य । दक्षस्य । महान् । हि । सः ॥३८१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 381
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 4;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 4;
Acknowledgment
पदार्थ -
(इन्द्र) हे परमात्मन्! (सुतेषु सोमेषु) निष्पन्न हुए विविध उपासनारसों में—उपासनारसों के प्रस्तुत किए जाने पर (क्रतुम्) सङ्कल्प करने वाले कर्त्तव्यपरायण उपासक को “स यदेव मनसा कामयत इदं मे स्यादिदं कुर्वीयेति स एव क्रतुः” [श॰ ४.१.४.१] (उक्थ्यं पुनीषे) प्रशंसनीय पवित्र निर्मल बनाता है—समर्थ बनाता है (वृधस्य दक्षस्य) वर्धक आत्मबल के (विदे) प्राप्त होने के लिए मैं तेरी शरण में हूँ (सः-महान् हि) वह तू महान् ही है।
भावार्थ - परमात्मा की विविध उपासनाओं के करने पर परमात्मा कामना प्राप्ति योग्य उपासक को सिद्ध कर देता है। वृद्धिकारक अध्यात्मबल प्राप्त करने के लिए वह महान् शरण्य है॥१॥
विशेष - ऋषिः—नारदः (नरद—सद्भाव का रदन न करने वाले का शिष्य या नारा—नर सम्बन्धी जीवन विज्ञान दाता)॥ छन्दः—उष्णिक्।<br>
इस भाष्य को एडिट करें