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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 468
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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स्वा꣡दि꣢ष्ठया꣣ म꣡दि꣢ष्ठया꣣ प꣡व꣢स्व सोम꣣ धा꣡र꣢या । इ꣡न्द्रा꣢य꣣ पा꣡त꣢वे सु꣣तः꣢ ॥४६८॥

स्वर सहित पद पाठ

स्वा꣡दि꣢꣯ष्ठया । म꣡दि꣢꣯ष्ठया । प꣡व꣢꣯स्व । सो꣣म । धा꣡र꣢꣯या । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । पा꣡त꣢꣯वे । सु꣣तः꣢ ॥४६८॥


स्वर रहित मन्त्र

स्वादिष्ठया मदिष्ठया पवस्व सोम धारया । इन्द्राय पातवे सुतः ॥४६८॥


स्वर रहित पद पाठ

स्वादिष्ठया । मदिष्ठया । पवस्व । सोम । धारया । इन्द्राय । पातवे । सुतः ॥४६८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 468
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 1;
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पदार्थ -
(सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू (सुतः) ध्यान द्वारा निष्पन्न किया—ध्याया हुआ (स्वादिष्ठया) अति स्वाद वाली—(मदिष्ठया) अति हर्ष देने वाली—(धारया) धारणा से (पवस्व) प्राप्त हो (इन्द्राय पातवे) उपासक आत्मा के पान—आनन्द धारण करने के लिये।

भावार्थ - उपासक के पान—अन्दर धारण करने के लिये ध्यान द्वारा निष्पन्न या ध्याया हुआ परमात्मा अतिस्वाद वाली अतिहर्ष वाली धारणा से प्राप्त होता है॥२॥

विशेष - ऋषिः—मधुच्छन्दाः (मीठी इच्छा वाला या मधुपरायण शान्त परमात्मा)॥<br>

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