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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 476
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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प꣡रि꣢ प्रि꣣या꣢ दि꣣वः꣢ क꣣वि꣡र्वया꣢꣯ꣳसि न꣣꣬प्त्यो꣢꣯र्हि꣣तः꣢ । स्वा꣣नै꣡र्या꣢ति क꣣वि꣡क्र꣢तुः ॥४७६॥
स्वर सहित पद पाठप꣡रि꣢꣯ । प्रि꣣या꣢ । दि꣣वः꣢ । क꣣विः꣢ । व꣡याँ꣢꣯सि । न꣣प्त्योः꣢ । हि꣣तः꣢ । स्वा꣣नैः । या꣣ति । कवि꣡क्र꣢तुः । क꣣वि꣢ । क्र꣣तुः ॥४७६॥
स्वर रहित मन्त्र
परि प्रिया दिवः कविर्वयाꣳसि नप्त्योर्हितः । स्वानैर्याति कविक्रतुः ॥४७६॥
स्वर रहित पद पाठ
परि । प्रिया । दिवः । कविः । वयाँसि । नप्त्योः । हितः । स्वानैः । याति । कविक्रतुः । कवि । क्रतुः ॥४७६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 476
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 1;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 1;
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पदार्थ -
(कविः) क्रान्तदर्शी सर्वज्ञ (कविक्रतुः) मेधावी उपासकों में क्रियाशील (नप्त्योः-हित) द्यावापृथिवीमय विश्व में या द्युलोक से पृथिवीलोक तक में “नप्त्यौ द्यावापृथिवीनाम” [निघं॰ ३.३०] निहित—व्याप्त या वर्तमान उत्पादक प्रेरक शान्त रसरूप परमात्मा (दिवः) अमृतधाम—मोक्षधाम के (प्रिया वयांसि) प्रिय पक्षियो! मोक्ष की उड़ान भरने वाले पक्षियो या पक्षियों के समान (स्वानैः) ‘स्वनान्’ ‘विभक्ति व्यत्ययः’ अपने अन्दर निष्पन्न करने वाले उपासकों को (परियाति) परिप्राप्त होता है।
भावार्थ - क्रान्तदर्शी सर्वज्ञ परमात्मा मेधावी उपासकों को क्रियाशील करने वाला, द्युलोक से पृथिवीलोक तक समस्त विश्व में व्यापक वर्तमान है। अमृतधाम मोक्ष की ओर उड़ान भरने के लिए पक्षी बन या पक्षी के समान हृदय में साक्षात् करने वाले उपासक को परिप्राप्त होता है॥१०॥
विशेष - ऋषिः—कश्यपोऽसितः, देवलोवा (कश्यप—पश्यक सर्वज्ञ परमात्मा से प्रकाशित कृष्ण अन्तःकरण वाला देवधर्म को लेने वाला उपासक)॥<br>
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